वंश भास्कर खण्ड - 8 | Vansh Bhaskar Khand - 8

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Vansh Bhaskar Khand - 8  by सूर्यमल्ल - Sooryamall

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ श्रीगणशुशायनप्तः ॥ _॥ अथाएश्टमराशिपारम्मः ॥ ॥ शुद्दाउपन्नद् भाषा ॥! । गीतिः ॥ जय गया तु मधाशण॒ुर बासार दिमकुदबादंमाधवला ॥ ए३ करावाह कृब्बं ताह असहइलु थवण हउं करउं॥ १ ॥ ॥ दोहा ॥ रणस्‌गा मणुउज्जला जगुवकछह अणमाणा ॥ अम्हारा ण॒ुमउ जग गुढक्करिकव्वनिद्दगा ॥ २॥ हु ॥ गीवाखुभाषा ॥ € आजनुएवब्णग्मावेपुत्ता ) तुरोपा० यः सदाउपश्यज्जाग्रश्त्वप्न २पुषुप्तिषु ॥ : अत्माराम स्ववप्लार चंडोदान नमाम्यहस्‌ ॥ ३॥ ( प्रायो अजदेशीया प्राकृती मिश्चितभाषा ) ( दोहा ) ॥ संस्कृत अनुवाद ॥ जपाति गणेशों गजाननों वाणी हिमकछुन्द्वन्द्रिकाधवला ॥ एते कारपत: काव्य तयोरसहश धतवनपद्द करोमि॥ १ ॥ : रणझूपा मनस्युज्ज्वक्ञा जनवछमभा अझप्रमाणा।॥. वर्य नमासो ये गूढाकृतिकावपनिधाना। ॥ २.॥. | गज के छुप्तवाले गणेश और चर, स्तेगरा ओर चन्द्रिका के समान उज्च्वत्त से पम्ान फा जप होथे (सर्वात्कबंण वर्तताम)- यही कावप कराते हैं जिनस्दी ४७७७७७७७७७४एेए्रनशशण णणणशशआआआआशाााा म॑ समानता रहित स्तुति करता हैं ॥. १ ॥ युद्ध सें चीर, सन. के. उज्ज्वल, जनों के. प्यार आर प्रमाण राहत, उसका सर नप्तस्त्रार करता हू जा भृठरचना रत का गया फे खजाने हं॥शा जो सदा जाग्रेत्‌, स्वप्न, खुएपि तीनां अ्रवस्थारओं से तयावस्पा को देखते थे श्रधात समाधि दशा में रहते थे उन न्ह्मानन्द स्वर्ण, ऋ अं सर प्ण्/डादान साधक परे पता का नम्तस्कार करता हुआ 2 नी




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