21 बनाम 30 | 21 Banaam 30

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21 Banaam 30 by आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १६ )*' ।पेचाला होने से पद्दो दछ करने में कठिनाई होनी है । गत यर्ष | सर्व-दल फमेटी मे इसे ह॒ज्ष करमे का सारी प्रयत्न किया था ( भीर बहुत कुछ काम मी उस झोर हुआ था, किव्तु हमें यह / तो मानना दी होगा कि अ्यत्व पूर्णयप से सफल नहीं दुआ । ; शि्त शरद प्रश्न फा हल सोचा गया उसका हमारे यदुतेरे | छुसल्षमान और सिफ्ज भाइयों मे घोर विरोध किया सथा ) फ़ीसदी के 'आँफष्टों को क्षेकर यजेड्ा खड़ा किया गया। भय ओर शअ्विश्यास कोरे सक॑ से महीं मिटा फरते। डमको सो » विश्यास प्लोर उदाय्ता हो से मिदा सफते हैं। मैं श्राशा करता हैं फि शिक्ष शिन्न जर्तियों के भेता अधिक परिणाम में यह विश्वास श्रीर उदारता दिलायेंगे। झगर हम समी लोग एक गुलाम वेश के भोसर गुलाम हैँ खो हम घपना या ध्पमी शाति फ्रा फ्या भा फर सकते हैं ! और इसमें हमारी हानि क्या दो सकती है कि हम एफ यार मारत को येड्टियाँ फाट दूं: और किर स्थठस्त्रता के घायुमयडत्ञ में सांसलें? फ्या हम यद घादते हैं फि थे विवेशी छोग जो हममें से भद्दों हैं भौर . शिल्द्ोंमे हमे गु्ामों में रख छोड़ा है हमारे द्ोटेसे श्रधिकारों , के रक्षक हों. जप कि थे हमें स्थतरत्रता फा प्धिकार देमे से । शमफार फस्ते हैं! कोई वहुपष्त ठाम ठाने हुए अक्पपदा को कुचल मरी सकता और म किसी श्रक्प पक्ष फो काफी रखा ही किसी ध्यवस्था समा में रसफे कुछ अधिक मेम्घर हो जामे




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