अभय की खोज | Abhay Ki Khoj
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
94
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about युवाचार्य महाप्रज्ञ - Yuvacharya Mahapragya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भय के स्रोत १९
भय के मूल स्रोत नही है । हमे खोजना होगा कि भय के मूल स्नोत
क्या हैं ?
भय के चार मूल स्रोत बतलाए गए हैं---
१ सत्वहीनता ।
२ भय की मति ।
३ भय का सतत चिन्तन ।
४ भय के परमाणुओ का उत्तेजित होना ।
१. सत्वहीनता
व्यक्ति मे पराक्रम नही है, वल नही है, शक्ति नही है, सत्त्व
नही है। जब शक्ति, पराक्रम और सत्त्व का अभाव होता हैं, तव अका-
रण ही भय पंदा होता है। सत्त्व अन्त करण से सबद्ध पराक्रम है ।
जिस व्यक्ति को अपने अस्तित्व का निरन्तर बोध होता रहता है, जिस
व्यक्ति मे अपने अस्तित्व के प्रति ग्लानि या हीनता का भाव नही है,
वह चेतना सत्त्व-चितना होती है । अपने अस्तित्व का बोध होते रहना,
अस्तित्व मे उभरने वाली विशेषताओं का वोध होते रहना यह सत्त्व-
चेतना है। जिसमे इसका अभाव होता हे, वह दूसरों को देखते ही डर
जाता है, दूसरो से प्रभावित हो जाता है। प्रभावित होता भी एक
प्रकार का भय है । सत्त्व की कमी ही इसका कारण वनती है । स्वयं
की दुर्बलता ही इसका कारण बनती है । इस दुनिया मे शक्ति-अशक्ति,
दुर्वलता-सवलता का नाटक होता रहता है। शक्तिहीन और दुर्बल
व्यक्ति की कोई सहायता नहीं करता। शक्तिशाली की सहायता में
अनामभित लोग आ जाते है । एक सस्क्ृत कवि ने लिखा है--“सखा
भवत्ति मारुत, 1
जब दावानल सुलगता है, आग सारे जगल को भस्मसात् करती
है, तव हवा उसका सहयोग करती है । वायु की सहायता के विना बाग
User Reviews
No Reviews | Add Yours...