नाना गुरु की कहानी | Nana Guru Ki Kahani

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Nana Guru Ki Kahani by मुनि धर्मेश - Muni Dharmesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नाना गुरु की कहानी 25 बैठे गहरीलाल जी खमेसरा आदि का ध्यान गया। परिचय पाकर बहुत पश्चाताप करने लगे। प्रात पारणे हेतु आग्रहपूर्वक अपने घर ले गये, रास्ते मे भी उनकी बोली-चाली विवेक की परीक्षा लेने लगे। घर पहुँचे। हाथ-मेुंह धोने हेतु पानी दिया गया, तब आपने प्रासुक धोवन की पूरी जानकारी करने के बाद ही हाथ लगाया | नीचे जाने लगे तो खींवेसरा जी ने नाली मे हाथ धोने का सकेत किया पर समुर्च्छिम जीवो की हिसा की वात बताकर नीचे गये और खुली जगह पर अत्यल्प धोवन मे कार्य निवृत्त कर वापस ऊपर आ गये, पारणा किया और रवाना होने लगे। उसी समय आपका हाथ पकडकर खमेसरा जी अपने कमरे मे ले गये। रुपये और नये वस्त्र लेने का आग्रह करने लगे। आपने आवश्यकता नही समझकर निषेध करते हुए स्थान पर आ गये और लग गये ज्ञानार्जन मे। बाद मे अपने कार्य से निवृत्त होकर खमेसरा जी आदि गुरुचरणो मे आये। सारी बात बताते हुए अर्ज करने लगे--अन्नदाता ! वैरागी तो बहुत परिपक्व और आत्मार्थी है। लगता है आगे जाकर एक महापुरुष के रूप मे चमकेगा | हमारी इच्छा है कि इनकी दीक्षा उदयपुर मे ही निवृत्त हो जाय। बस, आपके हुक्म की देरी है। उन सघ निष्ठ श्रावको की बात सुनकर युवाचार्यश्री गणेश ने फरमाया- श्रावक जी ! आप शासन निष्ठ व अनुभवी है। यदि परिवार वालो की अनुमति मिल जाय तो मेरी तरफ से कोई मनाही नही है | बस, यह बात सुनते ही सब हर्ष विभोर हो उठे और जुट गये परिवार वालो से अनुमति प्राप्त करने मे। 24. नाना की दीक्षा की अनुमति प्यारे बच्चो आपको यह बात सुनकर आश्चर्य होता होगा व्यक्ति आत्मकल्याण करने मे तो स्वतत्र है फिर उसमे परिवार की अनुमति की क्या आवश्यकता है। लेकिन इसमे सोचने की बात तो यह है कि आत्म साधना मे व्यक्ति तो पूर्ण स्वतत्र है लेकिन जिन महापुरुषो की चरण शरण मे साधना करना चाहता है वे महाव्रत धारी है। बिना परिजनों की ईजाजत से किसी को दीक्षा देकर अपना शिष्य बना लेना चोरी के अन्तर्गत आ जाता है इसलिये अनुमति प्राप्त करना आवश्यक हो जाता है। इसी उद्देश्य से विरक्‍तमना युदक नाना उदयएुर से कछ टिशिप्ट




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