अमर सिंह | Amar Singh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अमरभिई भच्
शानी-- हसमें प्राष्यय पया ? में हाड्ायग गये राजपुमारो
है महाराज !
अपम्॒रमिइ--परक्छा हादी-महारानी जय इसकर हारा के मृग
झाबाद को भी देद में
शानी-- . प्राप ही इस भसरपस्त प्रावध्मफ फायप वी पर से में
महल में घाऋर महाराज के काम या प्रठाम्प कर ।
[ एरी बा प्रस्षान 1
सारा- माता को मरी एगिस्गो भातो की मड़ी । बढ़ती हैं
सोख दो-वग्पन मुक्त कर दी
अमर मिई--दंटी बह राजपूत की बटो है। स्थताश्ता उनके
भ्राग्पों में सम ग्ठ्ी है । गे यघम में बद्ध डिसी प्राग्पा
थो भी नहीं दइगए सभी |
सारा पर पटि मैं उस प्यार करे ठब् भी ए्रपन में शॉप
मयभी है या मंदी २
इमरमिश-मर्गी यैटी प्यार गा बघने को स्थयं हो इतना थज
यूत है कि किसी घम्य बंधन गो प्रावा्यड्मा हो
मरी रखा 1
जाग शाप प्राप भो मेरे हरिए-्यादर को नहीं दगेंगे २
अमारसित--जरूर दपूगा शेरो घददाशुप् रस यरी से स््ाधो।
देंगे, हरिग-भादा शंसा है है
शारा--. [इशालएण पे) में एमी से छाती है ।
छाप बा “च्यग]
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