अनचान्हे गीत | Anachanhe Geet

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Anachanhe Geet by स्नेहलता - Snehlata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के र्द्द किन हुकडो में टूटा मानव अपने मानस को टटोलता है घुटता हुआ बेमाने होता है चाहत को अपनी समेट लेता है ध्यासा है अधूय है बैटा हुआ भटकता है लडखडाता है उठकर दूरियाँ छूए किस छोर की जब ख लुटता है अपना बिकता है। इस दुनियों में फरेब बहुत नाते रिश्तो का प्यार कम अपना कहलाने वालो की देहलीज पर ताडना अवमानना बनी ही रही।




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