चीन और च्याड | Chin Aur Chyad

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Book Image : चीन और च्याड  - Chin Aur Chyad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४8) हैं कि आने वाले अनेऊ बाहरी मकोरों को सहन करती हुई भी ये 'अपने को जीपित बनाये रखतो हैं । पर जहाँ यह लाभ है वहीं इसे प्रशृत्ति से कुछ द्वानि भी होती है। पुरातन से प्रेम करते हुए हम उन बन्धर्नों और रुढ़ियों से भी. प्रेम करने लगते हैं जो किसी युग में भले ही उपयोगी रही हों परन्तु वर्तमान की परिवतित स्थिति में निश्चय ही बाधक और द्वानिकारक सिद्ध होती हैं। प्रगति की धारा निरन्तर गतिशील है.। जगत ह॒र क्षण श्रागे बढ़ता चलता है और 'अपमे स्वरूप में परिवर्तन करता जाता है। अपने को इस गति के अनुकूल न बनाना विनाश को घामन्त्रित करना होता है। पुरातन से श्रेम करके यदि हम बतमान और भविष्य के श्रति आँख मूँद लें तो प्रगति का झुंठित हो जाना निश्चित ही हैं । बस, चीन की भी यही दशा हो गयी थी। देश भर में अन्नान का अन्धकार छाया हपआ था। हजारों वर्ष पुराने रदन-सहन ओर रीति रियाज में पली हुई जनता पर जप ऐसे समय में विदेशी शक्तियों ने पदाघात करके उसे अपमानित किया तो चीनियों ने अतुभव क्या कि घनका और पुरातन का सारा गौरव और देशामिमान विचूर्य हुआ चाहता है। बाहर से आने वाली शक्तियो का बल और उनका साइस तो उन्होंने देगय ही, फिर विज्ञान ने उन्हें जो विभूति अ्रदान की थी तथा विदेशी शक्तियों ने उसके असार से जो बल प्राप्त किया था उसका भी ,आभास उन्हें मिला। यही कारण है कि इस युग में चीन मे एक नयी चेतना क्षा आदुर्भोव हुआ। जिनके हृदय में देश की द्वीन दशा देख,कर क्लेश उत्पन्न हुआ चे अनुभव करने लगे ऊि राष्ट्र की रक्षा यदि करनी है और उसे विनष्ट होने से बचाना है तो अपने में आमूल प्रिबतेन करना होगा। इसी भावना ने चीनियों को व्यापक रूप से सुधार करने तथा बिदेशी ससकृति की ओर आकर्षित होने दिया । एऋे ओर जहाँ यह भावना फैली कि राष्ट्र बी रक्षा के लिए पतित भर बल ह्वीन मश्यू शासकों से अपना पिंड छुडाना होगा वहीं दूसरी ओर यह्‌ आकोत्ता व्याप्त दो उठी कि देश में पच्छिमी शिक्षा और विशप रूप से नयी सैनिक शिक्षा का असार होना चाहिए । इस प्रकार शैस९६ ईं० के निकट चीन में सावदेशिक भान्दोलन की उत्पत्ति हुईं जो देश में पच्छिसी शिक्षा का असार ररने की माँग




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