तुलसी आधुनिक वातायन से | Tulasi Aadhunik Vatayan Se
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
457 KB
कुल पष्ठ :
33
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वयवितिक सम्ब बाजी आर अभिसार क्रिया । व ग्राम [ सामाजिक इकाईके असमें )
का ओर उममुख नहीं ही हुए। इहान परिवारक अ र एक आतरिक स्वायर
( इण्दनर ऑटनमी ) को स्थापित किया । यह स्थापन काफा रोमण्टिक और
भावकल्प मूलक रहा हू । अत यहाँ छलोकमयाटा और वत्मयाटाका त्याग विधय
हू। प्राकतिक अचछाका स्वच्छ द जीवन, आभोर गापाकी निवःय चरवाही चयाएँ
तथा प्रेमम सभी क्रुण्ठाआका परित्याग कणप्णवत्तर प्रयाजन बन। नत्य, भाग
रास मिलन विरह प्रणयलोलाए आरिके द्वारा कप्णभवितन रागमूलव प्रेमको
निवाधित मुवित दकर वयवितिक मनस््तात्त्विक जीवनकी संक्स ग्राँ बयाका
उदात्तीक्त क्या । यहाँ परकीया प्रेम भां सहज हो गया अभिसतार और सभाग
ब्रीडाए हा गयो । दस वृत्तत बवियान रजक्का प्रेमी पति सखा बनावर उसे
भोग और सौट्य दानास परिपृण क्िया। इस तरह कद्घामिसारा 'वितन
परिवार और वयक्तिक जीवनका मदछना दुनियाक्रा रामण्टिक तथा भागात्मक
स्वच्छाटता दी | यहाँ तिय सौटय का प्रयानता रहा ।
अत इस कालम रामवृत्त और कथ्णवत्तका पुनश्च एक समानातर विकास
तत्कालीन समाजके अतविराधारा ही प्रतिविम्व ह। समाजन सुरला मकनिज्मके
द्वारा नाथा सिद्धा और मसल्मानावी चुनौतियाका प्रतिबाधन किया । सामतोय
प्यवस्थाती सीमाआके कारण ये कवि किसा अय समाज क्वा विकपन (आल्टरेंटिब)
ता नही द सब॑ कियु मर्यादा तथा उममुक्तिक बीच चीए सचालित एक सातुलन
कायम करनमें काफी सफल हुए। अत राममतित शाखान ग्राम टकाइया एवं
परिवार इकाइयांकों सगठित किया तो कप्णमक्ति च्राखान परिवारत आंतरिक
सम्ब घोमें स्व छत्ता ला दा। भवत होनक कारण इन कवियान टर्वीरोंके
जवित पीह-सौदयके चारित्रिक मूल्याव आगे लि य विशपण लगा दिया व्याकि
इनके नायर पुरुपात्तम थ | समाजणास्त्रीय दष्टिस टावित शील सौ-ट्यक मूल्याक्ा
मरूपातर कई नय तथ्य उद्घाटित करता ह | सौ-त्यका लें। कष्णमक्ति काब्यमें
नारियाँ रूप लावष्य गाभा संयुक्त हू जब कि राममकित गाखामें पुौ्तप ही
मटतको ठजानवाले ह--सीता रामपर शूपणखा ल्ल्मणपर तारा बालिपर
रोचतो ह। यदता नारियाँ दवियाँ 5 दवी सोतारी सबिकाएँ तथा स्ियाँ।
कष्णभक्ति शाखाम नारियाँ अभिसारिका गापियाँ कामचतुरा दूतियाँ ह॥
राममवित कायमें नतिकताे प्रवल आग्रदारे कारण नाराज पूण सोदय
चिपत्रण--विशापत नखशित्र बारहमासा या पटछतुक याजस--छगभग
नटी हा पाया हू ( दीपशिखा सरस्वती आरके रूपक्का छाटकर )। किलु
काणमतित कायमें नाराचौस्य हा छाकर छररा ह औौर क्रमश माय एवं
पहली गाप्टी ११
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