पार्श्र्वनाथ - चरित्र | Parshrv Nath - Charitra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : पार्श्र्वनाथ - चरित्र  - Parshrv Nath - Charitra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं. काशीनाथ जैन - Pt. Kashinath Jain

Add Infomation About. Pt. Kashinath Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
हऔ प्रथम सगे # रह नहीं पदचानते १” यह सुनते द्वो घह लज्जा, भय और शड्डाके भारसे झुककर नीचा सिर किये थेठ रद्ा । इसके बाद उसके मलिन घेशको दूर कर स्नाव और भोजन फरानेऊे घाद अच्छे बस्तर पहना फुमारने उससे कहा-“खुनों सज्न ! जो द्रव्य अपने खज़नोंके फाममें नहीं आता, चट भी किसी कामका है १” यह छुन, बदद नीच सेवक अपने मनमें सोचने छगा,-“अहा ! कुमारफों मुझपर केखो अकारण दया है? कहते हैं कि, जिसे सस्पत्तोमें हुए न दो, जिपत्तिमें चिपाद्‌ न हो और समर भूमिमें धैर्य हो, ऐसे त्रिुयनफे तिछक खरूप पुत्रको फोई विरलीही माँ पैदा करती है । * इसके बाद वह कुछ दिन वहीं आरामसे पडा रहा । एक दिन फुमारने उससे वाते करते हुए पूछा,--सज्जन ! तुम्हारी ऐसी दुर्गति क्‍यों हुई १” सज्जनने कह्ा,--हे स्वामी ! खुनिये, में आप की ऐसो दु्देशा करके आपको घहीं घडके पेड तले छोडकर चला गया | आगे जानेपर चोरोंने मुे छाठो सोंटे और घुस्से मुक्कोंसे मार पीटकर मेरा सत्र कुछ छीन लिया । केवल मुझे पापोंका फछ भोगनेके लिये छोड दिया। है स्वामी ! मुझे अपने पापोंका फल हाथों हाथ मिल गया और आपने भी अपने प्रुण्यका फल द्वाथों हाथ पा लिया। अप मु्े माटूम दो गया कि सचमुच धर्मकी ही जय ह्वोतो है। दे स्थामी | मेरा मुँह देखनेसे सी पाप रूगता है, इ्सलिये आप मुझे अपने पाससे छूर कर दीजिये !” यह खुन, फुमारने कदा,--“मित्र। तुम अपने मनमें किसो घात हू




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now