मंगल वाणी | Mangal Vani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
244
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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| हैथा ले तो उप्तका उसे प्रायश्चित्त लेना होता है| साधु की ऐसी सेवा शुश्रूषा
; झन्य साधु ही कर सकता है । कदाचित् श्रौषधि दूर से लानी है शौर श्रन्य
| साधु वहां से लाने की स्थिति में नहीं है तथा ग्रृहस्थ लाता है तो उसका भी
' साधु को प्रायश्चित्त लेना होता है । साधु की यह सारी सेवा श्रन्य साधु ही
” करता है तो, प्रश्त बना रह जाता है कि ग्ृहस्थ साधु की किस रूप में सेवा करे ?
ह साधु का सत्कार करने की बात यदि गृहस्थ सोचे तो साधु का सत्कार
| भी विधिपूर्वक हो किया जा सकता है। एक तो वह हाथ जोड़कर साधु का
ह वन्दन करता है--वह भी सत्कार ही है । वह साधु के लिये निर्दोष गोचरी की
. दलाली कर सकता है | दलाली का मतलब है साथु को दोषरहित शिक्षा मिल
सके--ऐसे घर बताना, उनके साथ-साथ जाना । कही घर में भ्रकेली बहिन हो
तो चूकि ऐसी स्थिति में साधु भिक्षा नह्टी ले सकता है तो साथ जाने वाला
भीतर जाकर साधु को बहरा सकता है । दलाल की उपस्थिति में ध्ठी उस
झकेली वहिन से भिक्षा ली जा सकती है। सेवा करने वाले दलाल मे यह सब
विवेक होना चाहिये । सामान्यतया दलाल को घर के भीतर नही जाना चाह्टिये
क्योंसि दातार की भावना कैसी है या कैसी नही है--यह दातार ही जाने या सन्तवर्ग
ही जाने । साधु को जैसी दातार को भावना हो, वेसी भिक्षा श्रपत्ती प्रावश्यकता
के झनुसार लेनी चाहिये | यदि कोई दातार कंजूस है तो वैसी बात साधु पचा
' सकता है लेकिन उतनी गंभीरता दलाल में नहीं भी हो | दलाल के भीतर जाने
से दातार व्यर्थ के संकोच में भी पड सकता है। इसलिये विवेकी दलाल दर-
। वाजे पर ही खड़ा रहता है भौर बुलाने पर भीतर जाता है ।
साधु की दूसरी सेवा मकान के रूप में हो सकती है। कही पर साधु
को मकान की शभ्रावश्यकता पड़े भौर गृहस्थ के पास श्रलग मकान है तो वह संत
को उसमें ठहरा सकता है | मकान के लिये भाज्ञा देना भी साधु की थैवा है ।
मकान की प्राज्ञा देने वाला महान् लाभ कमाता है ।
साधु की सबसे बडी सेवा यह होती है कि साधु जीवन को सुरक्षित
रखने का निरन्तर विवेक रखा जाय । यदि साधु भ्पनी मर्यादा से इघर-उघर
हो रहा है तो ग्रृहस्थ नम्नता से निवेदन करे कि भगवन् श्राप ऊँचे पद पर
पहुंचे हैं--भाप मर्यादा से विचलित होने का भ्रमुक कार्य न करें । ऐसा संक्रेत
भी साधु की सेवा है । यदि साधु को उसकी मर्यादा से हटाकर धाप कोई
सेवा करते हैं तो ध्यान रखिये कि भापकी वह सेवा कुसेवा है । उससे झ्ापकी
. निर्जरा नहीं होती बल्कि पापवघ होता हैं । जहा सहयोग की स्थिति में धाप
कमल आन. चऑआयओ
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