कुमार सम्भव सार | Kumar Sambhav Saar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.76 MB
कुल पष्ठ :
64
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हू ७. है गये हिमालय को उस माटी ऊरर तप करने भारी सुग-कर्तूति से सुरभित है जिस की चनश्यदी सारी ॥ 2 कलमकनी के कुण्डछ पहने भूज-उध की कामल छात्द चेठे सिन्धतलां पर नदी सूज्ों अदिक प्रमंध विशाल | जफ खेादते हुए सुर से चुषमरान ने सारचबार अखसहनाय 7सइध्यान सुन कर कया सयऊझुर शब्द अपार ड़ जिससे स्वयं सदा पावे हू तप के फल जन असुरागी लह्दी ईश निज आर मूर्तियां में से पक मूर्ति आस | रस्त्र सम्पुस्त प्रल्वस्िन उस कर छाड़ काम सच संसारी किसी अपूच कामना के चश बने तरथ््य्याकारी ॥ व इसी समय दे सखो साथ दे दो ठराज ने निज कन्या छिव-सेघा कर ने का सेजा रूप-रादि युशगश-घन्या | यदपि विध्नकर थी बह तप की तर्दापि झाम्स ने स्वोकारी पेसे में सो मन जिनके बच सच्चे चद घीरवारी ॥ झ्ेद दी सदा स्वच्छ करती थी फूल ताइ़ने जाती थी जल पूजव के लिए तथा कु प्रेम सहत ले आतो थी | इस प्रकार दाऊुर की सेचा कर वह उन्हें छुमातो थो उनके साल-चन्द्र की किरणों से श्रम सकल मिटावो थी ॥ इति प्रथम खर्गे | की च्ः सिविधकननानाना ही यु कक वि
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