रत्नदीप | Ratn Deep
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
368
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला भांग १६
होगा! ऐसी स्त्री से सासारिक छुप की आशा फरना दुराशा
मात्र हे । एक चार मुझ से भेद कर लेने के लिए सी न उरी,
मेरे साथ न जाती ते न सही | इतने दिन बाद एक बार सुझ
से भेट नो कर लेती | भेट करने में क्या हानि थी ? कोध ओर
अभिमान से गोपाल फा दम फूलने लगा । जप बह झिसी तरह
दु एके वेग को न सह सका तप श्रपने मन में कहने लगा कि
जाने भी दो, अप ससुराल न जाऊँगा, उसके साथ शअप फोाई
सम्पक न रस्पूँगा | मैं दूसरा ब्याद् करूँगा ।--इन बातों फो
सेचते विदाय्ते स्नान करके गोपाल घर लोट आंया।
खाने पीने फे बाद विछौने पर लेट कर गोपाल सोचने
लगा, शआज ते सुन्दरपुर लोटना नहीं है--कल दोपहर फी गाडी
से जाऊँगा। दूसरा विपाद्द करूँगा, इस सिद्धान्त को एक
अकार से भन में स्थिर कर लेने पए सेचा कि फिर भी लीला-
बती फे खाथ पएऊ बार श्ाखिरी मुलाफात कर लेना चाहिए।
आज चसन्तपुर जाकर उससे सुल कर वातें करूँगा। कहूँगा--
जैसे अन्य स्रियाँ अपने पति के साथ रहती हैं, उसी तरह
राहना यदि तुम स्थीफार करो ता मेरे साथ चलो। यदि उस
तरह मेरे साथ रहना मजूर न हे। तो आज मुझ से साफ
साफ फहद दो--म॑ दूसरा वियाद कर लें ।
गोपाल ने घडी निकाल कर देखा, एक वज फर बीस मिनट
हुए थे। उसने कपडे पहने। सिर्फ छतरी आर वेग से कर
चह पैदल ही सखुराल के रवाना हुआ ।
जब वह फाटक से बाहर निकल रहा था तय स्वर्णलता न
मालस फिधर से दोड कर आई ओर अपना छोटा हाथ उठा कर
चोली--क्षाका ।
“क्या है स्पर्य !?
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