लोकोक्ति कोष | Lokokti Kosh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
400
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अप्तो - , “(१३४ ) .. अलिफके
धर 1 मन कह बाली
अभी तो तुम्दारे द्ोठोंका दूध भी नहीं सूखा-- |? _ जंब कम कीमती चीजकी ज्यादा होशियारी की जाय,
ऊ० दे० | तब के |
अभी तो पैटी बापकी हैं १) ध्ंभी लड़कीका सिय्नन सुहाव ने टाट पटोरे ( तुलझो )
विवाह नहीं हुआ । व्याइसे पहिलेददी यदि समधी- | अरे हंस या नगरमें, जैयो आप विचारि।
से कुछ कटद्दा-उनी हो, तब क० (३) अब भी कुछ | कागनसों जिनिप्रोति करि,कोयछ दई विडारि |
हो सकता है। ( विहारी ) मृखाके गांवमें यदि कोई जाया चाहे,
अभी दिल्ली दूर दै--जो थोड़ा ही काम करके समक |... तत्र क+।
ले, कि मैंने सत्र फर लिया,उसपर क० | यह फारसी- | अके तरझूकी डारसे कहं गज ॒यांध जाये - छोडे
की मसल “हनोज् दिली दूर अस्त” का त्ुमा है। | आदमी वा छोटे सामानसे बड़ा काम नहीं हो
अभी सेरमें पूनी भी नहीं क्ती- ऊ० देय । _._ सकता। .... है
अम्यास सारिणी विद्या-अम्यासप्ते .विद्या | अर्दध रोग हरे निद्रा, सर्व रोग हरे क्षुघा--जब
आातीहै। ५, ८: , रोगी को नींद आये तो उसका श्ाधा रोग
अच्छा हो गया, ओ्रोर जब भूख लगे, तब उसे
« ८ करत करत अध्यामके, दडमति ह्ोत सुझात | ८८
बिल्कुल शाराम हों गया, समझना चाहिये ।
रमरी आदत जततते, सिलपर परत निम्ान ॥ (हत्द)
अमरसती खाकर फोई नहीं आया: कोई अमर . अल्क़लीलुल... फ़ितरतुन, अलतवीलुल भद्द
नहीं होता, सबको मरना है। है | मंकुन-- ( फा० ) नांदे फितरती श्योर लंबे प्ाहमक
अम्तानतमैं ख्यानत--घरोहरमें बेईेमानी करया।..।. होते हैं
अप्तीरका उगाछ गरीबक़ा आधार--अमीरको | नेल्ख पुरणकी माया, कहीं धूप कही छाया -
जो चीज फेंक देनेमें कोई फप्ट नहीं, गरीबके लिये | , « र्बस्की साया अपार है, अथवा ईश्वरकी माया
घट्टी बहुत कामकी है। , - जानी नहीं जाती, कोई उज्ली है कोई दुखी है।
अमीरको जान प्यारी,फ्क्ीरंको एकदम भारी- | अलख़ामोशी मीमसज़ा-फा? चुप रहना 'झराधी
श्मीरको अपनी जान प्यारी होतो है, लेकिन गरी- | समामन्दी है। सोन सम्मति लत्ञणम्।
चको नहीं, क्योंकि थे बहुत कप्दसे समय बिताते हैं | अल गई घंछ गई, जलवेके घक्त दल गई--
ओर जीनेसे मरना ही धयच्छा समफते दें। .... (झु* ज० ) जरूरतके वक्त काम न ध्यानिपर क०
अमीरने पादा.सेद्दत हुई, गरीबने पादा वैश्नदवी [ मलफ़रवः स्वाहमस्याद मर्दें आद्मी-मोदा ताजा
हुई--जिस्त कामके करनेसे घड़े आदसीकी तारीफ $ आदमी देखनेमें भलामानस मालूम पड़ता है।
होती है उसी कामके करनेसे गरोबकी निन््दा | अलबल खुदावल-- ईवरका बलही बल है।
होती है। अलबेलीने पकायी खीग, दूधकी जगद्द डाला
क्षय मेरे अगले] मनमाने सो रूर ले--( ० ) जब | नीर-( ज० ) मूर्ख औरतका किया काम बिगड़
कोई ख्री आपने अत्यावारी पति द्वारा सताई जाती |. जाता दै।
ै, तब ऐसा क० । अला बला बन्दरफे सिए--कुमंजोरके सिरपर दोष
शरजा बइल्लत, गिरगमँ बहिफमत-- फार ) मद्ा जाता है। है रु
सस्ती चीज खराय होती है, महंगी अच्छी ! जला लूँ, वला दूँ/सहनक सरका लूँ-सुर जन
.अरय खरयर्ों छच्छमी, उदय अस्तकों राज ! स्वार्थी बा कपटीको क० ।
, छुलसी दरिकी भक्ति बिन, ये आयें किद्दि काज् | भहिफ़के नाम वे नहीं जञानते--दिन्दीमें कहते हैं
,« ईग्वरकी भक्तिके बिना यह सब वृधा है। * . “म॑नेरज्षर भद्दाचार्य ५ 1” वेपदढेलिले आदमीको
' अरहरकी टदष्टी और शुक्ररती ताला--।[_ ऐसा के०ा
User Reviews
No Reviews | Add Yours...