अन्तर की आवाज | Antar Ki Aawaz

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Antar Ki Aawaz by मुनि ज्ञान - Muni Gyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दर] सहावीर जयन्ति आई है तर्ज- रविश रविश शशीन है. महावीर जयन्ति आई है, हर्षित समी को आज मन। जयकार बार हजार है, मुस्का उठा सारा गगन। जिन धर्म के है दिव्य भाल-भाल, झुकाऊ इनको मेरा सर। यही तो मेरे देव है, यही तो है मेरे सदन-3 ।।टेर |। सिद्धार्थ त्नय महावीर, त्रिशला के बाल है। मानव को भा गये यही, देवो को भा गये यही-2| घर-घर मे मगलाचार है-2, खुशियो की नव बहार है। ये झूम उठा ससार है, कि आये प्राणघार है।। यही तो सबके ताज है-2, झुकाऊ इनको मेरा सर। यही तो मेरे देव है, यही तो है मेरे सदन-2111 || हजार ढाई जा चुके, पर लाजवाब जबाब है। बडे-2 सिद्धान्त जो, सदैव जिन्दाबाद है। अटल ये मेरी धारणा-2 अटल ये मेरा धर्म है। मुझे तो इस पे नाज है, यही तो मेरा गान है। इसी मे सब का साज है-2, झुकाऊ इस पे मेरा सर। यही तो मेरे 1121| जीओ और जीने दो सभी को, एक यही झकार है-2 | काटे निकाले भीतरी-2, खिलादे अपना ये चमन। महावीर के झडे तले, हो जाए अपनी एकता। प्रेम सबका राज है-2, हो जाता इसमे शात्त मन। यही तो मेरे देव हैं, यही तो 11311 (17)




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