ध्रुवसर्वस्व | Dhruv Sarvasv
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
246
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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साौक लानत न भोर सँभ्त हित प्रूव प्रेमहो के
रग सरसाने हैं। प्यारी जू के मिलिवे की त्रि-
पित न होत कैद्द कोठि कोटि जुग एक पल से
७
विहाने हैं ॥ २४ ॥
बडे बडे उब्जल सुरंग अनियारे नैन अंजन
को रेख हैंरें हियरी सिरात है। चपलाई खजन
की अरुनाई कजन को उजराई मोतिन की
पानिप लजात है ॥ सरस सलज्ण नये रहत हैं
प्रेमभरे चन्नल न अद्यल से कैसे समात है।
हित ध्रुव चितवानि छटा जिहि कोद परे तिह्ि
ओर वरषा सो रुप की है जात है ॥ २५ ॥
फॉलपच सारो वनी सोंघेशी के मोदसनी
चिते रहे स्थाम धनी मानो चित्र ऐन हैं । अऔँगी
नौल रहो फवि कहि न सकत छवि मोतिन की
भलकनि अति सुखदैन हैं ॥ चितवनि मैन
सड्े मुसकानि रसभई को किलाहू वारि डारो ऐसे
रूटुवैन हैं । हित ध्रुव अग अंग सवै सुख सार-
सई सन के हरनहार वाके दोऊ नेन हैं 1२६॥
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