साम्राज्य और उनका पतन | Samrajya Aur Unka Patan

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Book Image : साम्राज्य और उनका पतन  - Samrajya  Aur Unka Patan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साम्राज्यों का निर्माथ साम्नाज्य बनाने में धर्म का कया माग रहा है। इसके लिए -मारते वर्ष का प्राचीन सादित्य बहुत सद्दायक दे । यद्दां के शास्रों में अश्वमेघ और राजयूय यज्ञ तथा चक्रवर्ती राज्य का विस्तृत वर्णन है । यज्ञ करने वाला राजा यश से एक वर्ष पूव एक सुन्दर श्र बलवान घोड़ा छोड़ देता था । उसके छाथ कुछ सैनिक दोते थे। घोड़ा चारों दिशाओं में जह्दां-तद्दां घूमता यदि कोई इसे पकड़ लेता तो इसका आशय यह होता था कि वदद यज्ञ करने वाले को चुनौती देता है जब तक वह उसको न जीत ले वदद यश करने का अधिकारी नहीं । यदि कोई घोड़े को न पकड़े तो यह समझा जाता था कि कोई व्यक्ति यज्ञ करने वाले की बराबरी का या उससे झधिक शक्तिशाली द्ोने का दावा नहीं करता सब उसकी झअधी- नता स्वीकार करते हैं । इस प्रकार प्रतिददन्दियों को विजय करके झथवा सब की झघीनता सूचित हो जाने पर यश किया जाता था उसमें सब अघीन राजा भाग लेते थे और यज्ञ करने वाले को उपद्दार या मेंठ देते थे। यज्ञ की समाप्ति पर इसके करने वाले को मद्दाराजाधिराज की उपाधि मिलती थी । इस पराक्रमी राजा को झपने कृत्य के लिए शाख्रों का आधार प्राप्त था उनमें लिखा है कि चाठुर्मास ( वर्षा श्यृठ ) के थ्न्त में शूरबीर राजा सेना ले जाकर छन्य देशों को विजय करें और राजयूय आदि यज्ञ करके चक्रवर्ती बने । भारतीय पाठक इस चक्तवर्तित्व को देश कौ राजनेतिक शक्ति




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