हिन्दी गद्य निर्माण | Hindi Gadya Nirman

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ही 1४5 ( २४ ) वि ' थे उद्‌' के बहुत अच्छे लेखक ये और उदू' के कई पत्रों का योग्यता-पूथंक सम्पादन किया था, पर पीछे से द्विन्दी लिखने की ओर इनकी प्रश्गत्ति हुई और कालाकॉकर के प्रसिद्ध देशभक्त आर दिन्दी-दितिषी राजा रामपालतिंह के “हिन्दुस्तान! पत्र में ये सद्ायक-संपादक बन कर आये।. वहाँ प्रंडित प्रताप नारायण जी मिश्र के उत्साइदान और सहयोगिता से ये हिन्दी के बहुत श्रच्छे लेखक बन गये | बाद को इन्होंने 'भाग्त मित्र). के द्वारा हिन्दी की श्रच्छी सेवा की । गुप्त जी उच्चकीटि के संम्पादक और प्रगति के साथ चलने वाले व्यक्ति थे | पहले से उदू के अच्छे लेखक रहने के कारण इन्होंने भाषा को रुचिकर बनाना भली-भाँति जान लिया था । मुद्दाबिरों को सुन्दर रूप॑ से प्रयोर्ग करने में यह पटु थे | समाचारपत्र में बोल-चाल की भाषा के व्यवहार से छोटे छोटे वाक्‍्यों द्वारा भाव-निदश न करने में ये सिद्ध-दस्त ये | इनके वाक्य छोटे-छोटे पर अथपूर, भाषा सरल और मुद्दाविरेदार होती थी । इनकी गद्य-लेखन शैली व्यावहारिक और चलती हुई हे । कहीं भी ऊबड़-ख़ावड़ नहीं अ्रकंट होती । प्रवाह का समावेश भली-भाँत 'हुआ है । यहू अपने वाक्य को दृढ़ बनाने के लिए. स्थान-ध्थान पर्‌ बात दुहग दिया करते थे। कंथन-प्रणाली का ढंग वार्तालाप का-सा है । गुप्त जी द्वास्यविनोद के सुन्दर लेखक थे; और बड़े मार्के का चुभता हुआ विनोद लिखते थे । उस समय भारतमित्र? में 'शिवशभु का चिट्ठा' के अंतगत प्रकाशित होने वाले लेख इसके प्रमाण हैं । इसके सिवा गुप्त जी अलोचक भी, श्रच्छे थे | भाषा पर इनका पूण अधिकार तो था ही, इसीलिए इनकी आलोचना बड़ी प्रभावशालिनी' और चमत्कारपूर्ण होती थी । उसमें रूखेपन का ओरभाह नहीं मिलता, | दिन्दी-उप-मिश्रित भाषा: शैली इन आलोचनाओं की प्रधानता थी । आपने कई पुस्तकों की रचना की है, किन्तु अधिक समय अश्वबार- नवीसी मे व्यतीत करने के कारण स्थायी साहित्य का कोई ग्रन्य नहीं लिख सके | हिन्दी के छेखकों पर इनकी सरक्ष ओर बोधगम्य भाषा शैली का काफी प्रभाव पड़ा हे । > ' ' हे




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