प्राचीन हिन्दी कविता | Prachin Hindi Kavita

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सोच बिचार करे मत मनमें, जिसने ढूढ़ा उसने पाया। सानक भवततदे पद परसे, मिस दिन रामचरन चित छाया ॥ (२) सुम्रन कर ले मेरे सता) तेरि बिति जाति उमर हरि नाम बिना॥। फूप भीर बिन धेनु छोर बिन सदिर दीप बिना। जसे तत्वर फल बिन होना तसे प्राणो हरनाम बिना ॥ वेहू नने बिन रम चद बिन घरती मेह ब्रिना। जसे पद्चित चेंद विहोना तसे प्राणी हरनाम बिता॥ काम क्रोध मद लोभ निहारो छाड दे अब सत जना। कहें मानकर! सुन भगवता या जग नहिं कोइ अपना ॥। ७) काहे रें बन खोजन जाई। सब निवासो सदा अलेपा, तोही सग समाई॥। पुष्प सध्य ज़्यो वास बसत हूं, मुफर माहि जस छाई। तसे हो हरि बस निरतर, घट ही खोजो भाई॥ बाहर भीतर एक जानो, यह गुरु ज्ञान बताई। जन नानक बिन आपा घीडहे, मिट न भ्रमकी काई।॥। १७ भरा ब-२




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