प्रेमचन्द और उनका गोदान | Premchand Aur Unka Godan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : प्रेमचन्द और उनका गोदान  - Premchand Aur Unka Godan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about कृष्णदेव झारी - Krishndev Jhari

Add Infomation AboutKrishndev Jhari

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्रैंमचन्द-पूर हिख्दौ-उपस्पात 1६ उपम्पार्सों में पहछी प्रवृत्ति है तो पौराधिक-घामिक प्रारिबारिक सामाजिक उपदेश अ्प्मात रुपन्यासों में हूसरी ) फिर भी 'तिसस्मेड्टोशहवा” वो घाव से पड़से बाले प्रेस अस्द में तिशस्मी मस्वाभाबिक पानकों क॑ स्थान पर, सुप्तारबादी रचतामों के प्रभाव से हिम्शो कषा-साहिस्प को जीबदम की मयाजंता मौर भादभ प्र जायों म शॉजर बा निश्चय किसा यह साहि्य के लिए बद्दे शौभास्य की वात थी। 'सबासद जसी प्रौद रचना प्रस्तुत करके प्रमचम्दजी मे हिम्दी उपस्मासकृप्ता को प्रौड़ता प्रदान की । जीवस का स्पापक चिद्रण अनक सास्ताजिक समस्याप्रों का यथा भनुर्भा पूल प्रकाशन स्थापाबिह्र धिस्दमतीय मासदीय संबेदमादों से पूम कंपारुंक भिन्न पिक्ष बर्षों और पेशों के ऊमेक पान्नों का यथार्थ अरिण-चिस्रभ पाहातुरुप एव स्मानाशिक घजीन सबाद युस-धर्म दी सजोबता सुम्शर खरस परिष्कुश मौर प्रमावा रपक भाषा-शैशी जीदत की स्वस्थ प्ररपार्मों और मादर्शों का महान उदड् क्षय भादि मुझों दो खबतारणा हिन्दी उपस्पास में सर्वप्रथम प्रंमचम्दजी की लेखतौदटारा ही अस्तुर्त हुई ( मानबता का इतसा इ झ-दर्द शौर रखसि-दुखित शोपित निम्न अर के प्रति इतनौ छच्ची सहानुमूति लेकर जाते बाला शायद ही दूपरा कलाकार कहा जा छुक ( भारतीय जौदत केः पिछज पत्नामों बर्पों का सामादिक घाभिक राजनीतिक छबर्प और बिकास जितती छत्पता स उसके उपस्यासो में पाया जागा है बसा इूति हास की पुस्तकों में डूड़े से सौ सड्डी मित्र सस्ता । निश्बय ही प्रमचस्द का जागमंग हिस्वी-साहिए्प के हिय ही रहीं अपितु भारतीय साहित्य के प्िमे बरदात-पहन् प्रिड हुमा । दे हमारे सांस्दूलिक सुद थ | णइ भारत के निर्माण म॑ उनका मोम कसी रामनहिक गा सामाशिश सेता से गम तही है। जो कार्द राजनीति के ८८ में मांधीजी जैसे राजनीधिज्ञ तेता मे किया बड्ढी कार्य सापहिसप के क्षेब म॑ प्रेमबादजी गारा पम्प्त हुआ। रूपन स्पक्तिगव जीवन सपा युग-डीबग से बहुन-चुछ पाकर उम्हेंने सब “कुछ अपने पुम और शादी युग को दे दिया अपने सिंद के लिए झुछ सी गहीं राजा दुछ भी तही चाहा ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now