रसायन संग्रह | Rasayan Sangrah

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Rasayan Sangrah by विश्वम्भरनाथ - Vishvambharnath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रसायनसग्रह। १९ सिलता इस छैतु जिस भातिसे साबुन का अधिक प्रचार हो _के उसकी चेष्टा करनो सबको उचित है। जब तक यहा प्रविद्न साबुन बनानेका प्रवन्ध अच्छी तरचहसे न होजाय तव इक इहसारो समभमे हिन्टूलोग कुछ कष्ट सहके अपने घरोंमें भापको साबुन बना लिया करे तो बचत अच्छा है। ,जीर--बह सी दो प्रकारका होता है एक पीटाश क्षीर दूसरा सोडा। चारयुक्त हत्तोको जला कर जो ज्ञार मिलता है उसोसे पोटाश बनता है। यह्दाके धोवी केलेके हक्तत्ते एक प्रकारका ज्ञार निकालते है वह भी यही पोटाश है। पोटणाशमे कोमल (४०४) और मसोडासे कठिन ( सछ000 ) सावुन बनता है। पहिले क्ारते साबुनके उपयुक्त क्वारणल बनाना होता है, अगरेजोमें इस चार- अलको ल्‍थे (1,०07 ० 1.7० ) कहते है। कठिन साबुन बनानेके लिये जो सोडाका चारजल वनता है उसे साबुन वाले ऐलकैली ( /:४)॥ ) कहते हैं। बाजारमसें जो सोडा मिलतर है उसे कार्वोनिट आफ सोडा (५४४01॥69 0९ 800४) कहते है, उसोसे कार्वोनिक एसिड (०४४४४००७४० ६७वे) निकाल लेनेसे काष्टिक सोडा होता है। यही साबुन बनानेमें काम आता है। एक पेंदेमें छिद्र॒युत्ष लोहेके बरतनमें यूडा चूना बिछा कर उसके ऊपर सोडा विछाया जाता है, उसके ऊपर चूना और फिर उस पर सोडा बिछाते है। जब बरतन आधा सर जाय तब उसमें पानी डालके अच्छी तरइसे ठक देते है, एक दिन बाद नीदेवा छेद खोलके उसमेंसे पानोको चुथा कर एक सोसेके बरतनमें रख छोडते है। यही उत्तम सारजल है और बड़े बडे कारखानोम इसो तरइसे वनाया




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