वैदिक वांग्मय का इतिहास | Vaidik Vangmay Ka Itihas Part I

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Vaidik Vangmay Ka Itihas Part I by पं. भगवद्दत्त - Pt. Bhagavadatta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मर. मे वेदिक वाझाय का इतिहास... [प्रथम भाग ख--चाछक्य कुछ के महाराज पुछकेंधी द्वितीय का. एक शिलालेख . दक्षिण के एक जैन मन्दिर पर मिला है। उस में लिखा है-- प्रिशत्सु त्रिसदस्रेषु भारतादाददवादित सप्ताव्दशतयुक्तेषु ड(ग)तेष्वब्देषु पत्चसु ॥३३। पंचाशत्सु कठो काठे षद्सु पत्चशतासु च । समासु समतीतासु शकानामपि भूमुजाम्‌ ॥ ३२४ भय अर्थात्‌--भारतयुद्ध से ३७३५ वर्ष जाने पर जब कि कि में दाकों के ५५६ चष व्यतीत हुए थे तब के _.. ग-्सिद्ध ज्योतिषी आयभट अपनी आयमटीय के कालक्रियापाद में लिखता पष्स्यब्दानां पष्टियदा व्यतीतास्त्रयश्र युगपादा | च्यधिका विशतिरब्दास्तदेह मम जन्मनोउतीता ॥१०८॥ थात्‌--तीन युगपाद और चौथे युग के जब ३६०० वर्ष व्यतीत .7 ः हो चुके तब मुझे जन्मे हुए २३ वर्ष हुए हैं सर कलियुग संवत्‌ के सम्बन्ध में डा० फ़्लीट की सम्मति पूर्वनिर्दिष्ट अन्तिम लेख से अधिक पुराने काछ में कढि संबत्‌ ह डा का प्रयोग पुराने अ्न्थों में अभी तक हमारे देखने में नहीं आया | परन्तु . इस का यह परिणाम नहीं हो सकता कि कछिसंबत्‌ एक काल्पनिक संबत्‌ . है और यहां के ज्योतिषियों ने कढि के ३५०० वर्ष पश्चात्‌ . अपनी सुविधा . के छिए इस का प्रचार किया । पक ......... इस सम्बन्ध मैं डा० फ़्लीट ने दो लेख दिखे थे। वे लेख इस सम्बन्ध में समस्त पाश्चां्य विचार का संग्रह करतें हैं। उन के कथन का हा ः सार उन के लेखों के निम्नलिखित उद्धरणों दिया जा सकता है--- दर पा छिप 20४ 5प८0 . छाए. 1ा00785. 6 दि घिका िह 1८ कैन्लसतारतिवपकििलसतिसततलियलरिनतिलपसयसतलतारतततकताटरटकससतकलकसगससककसतकशततकतलपगगग सनसनी या क ं ट २-ज्योतिर्विदाभरण नामक ज्योतिष ग्रन्थ में . इससे पहले की एक सन लेख हैं। परन्तु यद्द ग्रन्थ कितना पुराना हैं यह अभी विवादा- / स्पद है| गा कक न नि दर इ-पर कि कै हि.19171. पुन उज्वन४९ तथा ६ू७५-६९८] जमकर




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