सुख की प्राप्ति का मार्ग | Sukh Ki Prapti Ka Marg

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Sukh Ki Prapti Ka Marg by चाणक्य प्रेरक प्रसंग - Chanakya Prerak Prasang

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डी उनिया सानसिक श्वस्थाद्मी की परिटॉडि है । कद हककयकलालदददकयटललरनददलाितविदलददकडनदयकिटलकलवयववाल किस ेटलिदायदडलटयलफडटरफटचटलदनियॉदककपदयनयॉरॉकनिटक्एयनक्ककेनरयदन्यनावलकय फ़रने हि। 'घर्थात जैसे दम स्वयं है दूसरों को थी चेसा हो समसते है । जी मनप्य घाविश्चास्म दाना हैं; चह सैसार भर को प्रयिश्चासी लमभाना है । कृठा-'प्ादमी यह सम कर घपने जी को बदलाना है कि ससार में पक भी सनुप्य एसा नहीं है फि जो चिल्कुल सच योलनता दो । ईिप्यां और दाद रखने चाले नुप्य सब को घ्पन समान समसने | ऊरुपय समुस्य को सदा इस्स थात करा मय लगा रदता है फि कही लोग मे माल की ने छोन ले | जिस ध्ादमी ने रुपया कमाने में श्रपने ईमान को घेय दिया है व्रद सदा श्पने तकिये के नाच तमश्च रस्वकर सोना है पार इस घाऊ मे पड़ा रहना हैं कि इस दुनिया में चेरेमान घादमी भरे छुये है जा उस के घन क्रो उससे जवरदस्ती छीनना चाहने हें और जो मनुष्य चिपय-वालनाशओ में लिप्त रहते साघु महात्मा को भी ढोगी पार सफ्कार समभतने है । इसके विपरीन शिनक विचार उदार, पतिन्र ध्योर ेमयुक्त है, दूसरों के साथ प्रेम ओर सहाजुबूति रखना ध्पना धर्म समझने है । सच्चे भार ईमानदार घ्यादमियीं को कभी शा या सट्टाय से दस्त नहीं होता । उदारसित सन्लुपय दुसरे को बढ़ती टेस्व कर प्रसन्न होते द भर वे ज्ञानने भी सही कि ईप्या या डाह फिर कहते है । जिन लागों ने झपनी प्ान्सा में परमात्मा का घ्नभव -कर लिया है. वे प्रार्गी सात्र में ईपब्र-दर्शन करते है । समस्त सती पुरुषों को छापने मानसिक विचारों की सत्यता इस घात से प्रा रूप से सिद्ध हो ज्ञाती है कि काय कारण के नियमाजुसार वे उन्ही चिचारो शो ध्पनी घोर प्याकर्पित करते है. जिन वे पते भीतर से सिक्रालते है घोर इस लिए थे श्भू




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