दिन दहाड़े | Din Dahare

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दिन दद्दाडे”** / 17 चुनाव क्षेत्रों मे अब्दुल्ला के पक्ष मे भापण दे आए थे, जहां सिखो के कुछ चोट थे ॥ 1983 के 27 दिसम्बर को इंदरसिंह स्वयं जाकर डा ० अब्दुल्ला को 'भिडरांवाले का एक गुप्त पत्र दे आया था । उसमें बया लिखा था पता नहीं; पर उसके घाद से अस्त्रशस्त्र (जिन पर पाकिस्तानी या चीनी छाप थी) जल्दी-जल्दी आने लगे थे । इंदरसिंह को जम्मू मे ही उस अवसर पर पता लगा था कि 10 दिसम्बर को कांग्रेसी नेता मुफ्ती मुहम्मद पूच में एक सभा मे भाषण देने जा रहे थे तो नाना गगली साहंब गुरुद्वारे के पास सिख फेडरेशन के छात्रों ने नंगी तलवार दिखाकर गाडी रोक ली थी । सुनाने वाले ने हुसकर सुनाया था कि मुफ्ती साहब थरथर काप रहे थे और शायद उनकी पेशाव (या टट्टी ठीक याद नही, या दोनो) निकल पड़ो थी । उसी सक्‍त कुछ कांग्रेसी आ गए, तो वह भीगी बिल्ली से कसे तुरन्त शेर हो गए थे सुनकर इंदरसिंह खूब हंसा था। शिकायत करने पर भी डा० अब्दुल्ला ने कोई कार्रवाई नहीं की थी ॥ इंदरसिंह इन घटकों के आधार पर यह समझने में असमर्थ रहा कि अब्दुल्ला सरकार ने गोलिया कैसे चलाई, पर कही फौजी चढ़ाई से घवड़ा- कर वह बदल तो नहीं गई । उसने सोचा कंडक्टर से पूछ ले । वोला--कडक्टर जी । “क्‍या वात है सरदारजी ? घबराओ मत वटोट में ठह्रेंगे, वहां चाय 'चर्गरह पी लेना । “नही, चाय की नहीं पृ रहा हूं । -्वो क्या प्रुषछ रहे हो ?--कहकर उसने मुह फेर लिया, वोला-- थीनगर में कर्फ्यू लगा है, दफा 14477” ड्राइवर की ओर से तिरस्कारपूर्ण इशारा पाकर कंडक्टर चुप हो गया । पर ड्राइवर मे थोडी देर रुककर एकाएक कहा--श्रीनगर में सरदार गिरफ्तार हो रहे है । अगर चाहो तो बटोट में उतर जाना । तुम्हारे पास सामान भी तो कुछ नहीं है। कोई पिस्तौल वगैरह हो तो तूसी सानु (तुम हमको) दे जाना । हमें शौक है इन चीजों का । सुनकर इंदरसिंह रोए कि हूंसे समझ मे नहीं आया । दूसरे यात्रियों




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