प्रबंधचिन्तामणि | Prabandha Chintamani
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.55 MB
कुल पष्ठ :
179
श्रेणी :
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हजारीप्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दुबे का छपरा', ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।
द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में वसरियापुर के मिडिल स्कूल स
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रास्ताविक चक्तव्य [छ हिन्दी मापान्तरकें प्रकट होनेके वाद ( जो अब झंध्र ही प्रेसमें जानेगाठा हैं ) प्रकट दोगा- अर्याद् हमारी सफल्पित योजनाके अनुसार वह इस प्रबन्घचिन्तामणका ५ वाँ भाग होगा 1 कै ६. प्रवन्घधचिन्तामाणि चर्णित ऐतिहासिक तथ्योंके विपय कुछ स्वाभिप्राय ज्ञापन । इस ग्रथके पढ़नेवाले पाठकॉको यद्द वात छश््यमं रखनी चाहिये कि - यद्यपि प्रन्थ प्रधानतया ऐतिहासिक प्रबन्धोंका सम्रददात्मक है तथापि इसके सब-के-सब प्रबन्ध ऐतिहासिक नहीं हैं । खास करके अन्तिम प्रकाशमें जो पुण्यसार कर्मसार वासना कृपाणिका इत्यादि शीर्षक ५-७ ग्रवन्ध हैं वे पौराणिक ढंगके कथात्मक रूप हैं । उनमें ऐतिहासिकतता खोज निकाठना निरर्यक है । वाकीके अन्य बहुतसे-प्राय सब ही- ऐतिहासिक माने जा सकते हैं पर इनमेंसे भी दुछ प्रवन्वोंमें वर्णित व्यक्तियोंकि मिपयमें अभी तक इतिहासपिदोमें थोड़ा बहुत मतभेद अपस्य है। टटान्तके तौरपर प्रथम प्रकाश प्रारम-ही-में दिये गये निकमार्क राजे व्यक्तित्वके गिपयों निद्वानोंमे अभी तक कोई एक निर्णयात्मक पिचार स्थिर नहीं हो पाया | वह राजा कौन था और कब हो गया इसके पिपयमें अभी तक अनेक तके-गितर्क किये जा रहे हैं | नामके अतिरिक्त प्रमन्ध कथित और सब वातें तो एक कह्दानीकी अपेक्षा अन्य कोई अधिक महदर्त नहीं रखती । यहदी चात्त सातयादनयाले प्रवन्धके विपयमें कही जा सकती है । सातयाहन राजाका नाम यद्यपि दिढाढेखों वर उपलब्ध होता है पर इस नामके कई राजा हो जानेसे और प्रबन्धर्मे वर्णित घटनाका कोई ऐतिहासिक प्रतीत न दोनेसे उसके विषयमें मी नामके अतिरिक्त प्रवन्धकथित समूचा वर्णन कल्पनात्मक ही मानना चाहिए । साततमाइनके वाद भूयराजका जो प्रबन्ध है उसके अस्तित्वके निपयका अभीतक अन्य कोई ऐतिहासिक म्रमाण उपठाधघ नहीं हुआ है पर उसके ऐतिडासिक पुरुप होनेका समय माना जा सकता है । इस तरदद इन छुठ दो चार ना्मेकी व्यक्तियोंको छोड़ कर बाकी जितने भी नाम इस प्रथमें आये हुए है वे सब प्राय ऐतिदासिक पुरुप हैं । हाँ उनमेंसे कुछ कुछ व्यक्तियोंका सबन्ध परस्पर एक दूसरेके साथ इस तरह जोड दिया गया ढे जो श्रमात्मक हे । उदाहरणके तौरपर भोज-मीमके वर्णन याठे दूसरे प्रकाश धारक परमार राजा भोजदेवके साथ खास करके मद्दाकय़ि बाण मयूर मानतुह्ठ और माघ आदिका जो परस्पर सम्बन्ध और समकाटीनस वर्णन फिया गया है वह सर्मथा श्रात और निराघार है । प्रन्यकारके पूर्पपर्ती और प्रसिद्ध पिद्वान् म्रभाचन्द्र सूरिने अपने प्रमावकचरित्रेमें इन ब्यक्तियोंका वर्णन और ही राजाओंकि समयमें दिया दे और चदद कुछ प्रमाणभूत मी सिद्ध होता है। तब फिर न माद्म मेर्तुट्ठ सूरिने किस आधार पर ऐसा श्रान्तिपूर्ण यह वर्णन अपने इस मदप्पके म्रथमें प्रथित कर डाठा दै सो समझमे नहीं आता । भोजप्रबन्वकी ये बहुतसी वातें कल्पनाप्रसूत और ठोककथायें जैसी प्रतीत होतीं हैं. | प्रन्यकारने ये बातें किसी पुरातन प्रश्न्ध आदिके आावार पर छिखीं हैं या सिसीके मुखते सुन कर डिखीं हैं. इसके जाननेका कोई साघन अमीतक ज्ञात नददीं हुआ । सिद्दराज और कुमारपाठके समयके जितने वर्णन इसमें प्राथित हैं. वे प्राय सब-के-सम ऐतिदासिक और आधारमूत हैं । उनके घटनाक्रममें कुख आगे-पीछे पनका समय हो सकता दे पर उनमेंका कोई वर्णन सर्गधा निर्मूठ दो ऐसा नहीं माना जा सकता । मेरतन् सूरिके इस प्रयमें ऐतिदासिक इटिसे जो सबसे अधिक निशेष मददस्वका उल्लेख पाया गया डै
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