पुराण सिद्धिः | Puran Siddhih
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.3 MB
कुल पष्ठ :
88
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१ १ )
प्रमाणाध्याय; स्ल्ल््झ
भूत च भव्य च सब यश्वाधितिाति” |
जो परमेदवर भूत, चर्तेमान, भविष्यति तीनों कालों का
शाता है । जब ईदघर तीनों कालों को जानता है फिर क्या उसने
यह सद्धदप कर लिया कि भागे का शान न लिखें वेद में तीनों |
का के चिपय जनक शान हैं । इस बात को मनु साफ तौर से
कहता है कि--
“भूत भव्य भवचयत्सव वेदात्प्रतिछितमू”
अर्थात् भरत भविष्यत चर्तमान में जो होता है उस सबको
बेद में देखो, फिर घद्द होने वाली वात को प्रथम ही छिख दे
तो शड्डा क्यों करते दो १ एक वात और भी सुनलो कि साधारण
मनुष्यों की लेखनी तो इतिहास के पीछे पीछे. चलती है और |
ईदबर की लेखनी बेद के पीछे .पीछे इतिहास जाता है इसमें तो |'
शह्मा का कोई काम मी नहीं अव इसके आगे कोई कोई यह भी
प्रदन करने लगे हैं कि--
अच्छा यह तो माना कि वीज रुप से पुराण वेद में दे
(४) परन्तु पुराण ८ क्यों ?
उत्तर--चड़ी आपत्ति को वात है कि वात वात में शड्दा । यदि
पुराण १५ होते तो भी यह शड्टा, वनी ही रहती कि पुराण १४
क्यों ? और यदि पुराण २०-होते तो भी यह दांझा वनी बनाएँ
हो थी में आपसे पूंछता हूं कि १८ की दाड्टा पुराणों में ही
वयों करते हैं इस सनातनधर्म में तो सब ही ग्रंथ १८ की संख्या
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