श्री एकनाथ - चरित्र | Sri Eknath Charitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गद्य 4 च. कल्लय कक लव मल्नन्ज न उन की: बयान कै! ज श्ु यू ब न जज थी चर ह ३ ् 2 कि जी न कं १. ४ जग न ट्ासापन्त [ 9 3 रासोपन्त, सुक्तेश्चर, कृप्णद्याणव, मोसोपन्त आदिसे भी कहीं- कहीं सहारा लिया है और अस्तमें 'र्तुति-खुमनाजलि' में पक- नाथ मद्दाराजक पश्चात्‌ जो कवि छुए उनके एकनाथके सस्वन्ध- में प्रेमोद्ारोंफा संग्रह किया है । इन प्रेमोद्रारोंसे यह अच्छी सरद मालूम दो जाता है कि मद्दीपति और फेशवकुत अन्थोंमें दी हुई कथाएँ स्व कितनी परिचित हो गयी थीं । इस अल्थमे स्थान-स्थानपर पएकनाथ महाराजके अन्थोमेंसे उनके अनेक चचन उदुधूत किये हैं और जहाँ हो सका है वहाँ एकनाथ महाराज्का मनोभाव उन्होके शब्दोंसे प्रकट कराया है। पकनाथ मद्दाराजसे दी उनका अपना चर्त्र कदलचाया है और चरिन्न और अन्य दोनोंका मेंठ 'दिखलाया है। यद्दी इस अन्थ- की विशेषता है । पहिले अध्यायमें नाथके प्रपितामह् माजुदास- का समग्र चरित्र दिया है और इसमें भी चरित्र और चचनोंका मेल दिखलाया है | दूसरे अध्यायमें नाथके चाद्यकालका चर्णन है जो चाठकोंके लिये चहुत चोघपद होगा । तीसरे अध्यायमें सनाथके गुरु जनादन स्वामीका परिष्दय देकर नाथकी शुरूसेवा सर स्वामीके सथयुण साक्षात्कारका वणन पएकनाथके शब्दोंमें ही कराया है 1 चौथे अध्यायमें एकनाथ महाराजकों जो भगवान, दु्ताबेयके दुर्शन हुए उसका चर्णन करके, नाथके दत्तमानस- एूजा-सम्बन्धी अमंग दिये हैं और उसके अन्लुष्ठानकी पद्धति- का घर्णन किया है । पाँचवेंमें एकनाथकी तीर्थयात्रा सौर नाथ सर यक्तपाणिके परसपर-वियोग तथा पुनः मिलनके प्रेस-रख- 'परिप्छुत प्रलंगका चर्णन किया है । छठा अध्याय बड़े मददत्वका न लत | बनने न नह न नल. गए पक न अपन पा ७. न नलन्नडन डा बन न ड च् ल्ल कम 2 श्र € ठरः




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