शेर और सुखन भाग - १ | Sher Aur Sukhan Part-i

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sher Aur Sukhan Part-i by पंडित लक्ष्मी चंद्रजी जैन - Pt. Lakshmi Chandraji Jain

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about लक्ष्मीचन्द्र जैन - Laxmichandra jain

Add Infomation AboutLaxmichandra jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
शेरोसुखनकी प्रेसकापी मेरे गप्रनन्थ मिन्न सुमत साहवने बहुत साव- घानीसे देखी है । में स्वय उनके पास एक माह रहा हूँ । जो बेर ज़रा भी यचउ़ूनसे गिरा मालूम दिया निकाल वाहर किया । जिस स्थलपर तनिक भी सन्देह हुआ तत्काल मूल ग्रन्यसे मिलान कर लिया । २००-२५० सुमत साहब देहलवी हू ्ौर श्राजकल होवियारपुर (पजाबव) में फर्स्टक्लास मजिस्ट्रेट है । उर्दू हिन्दी श्रग्रेसी-साहित्यका बहुत श्रच्छा शीक्र रखते है । भारत विभाजनसे पू्॑ श्राप रावलपिण्डीमें सिस्ट्रेट थे झौर झदवी हलकोके रूट्देरवाँ । श्रच्छे-भ्रच्छे दायर श्रौर अदीव श्रापके यहाँ महीनों सेहमान रहते थे । श्यापके ज़मानेमें वहाँ जो पुरलुत्फ सुहबते श्रौर श्रालीशान सुशायरे हुए उन्हे लोग भुलाये नहीं भूलते । हिन्दुसो- सुस्लिमोके वीच श्रव दीवार खडी कर दी गई हैँ फिर भी उनकी याद लोगोके दिलोसे नहीं मिटती श्रौर श्रदीव-ग्रहबाबके ख़तूत श्राते ही रहते हे । जव श्राप रावर्लपिण्डीस जुमने तररकीये उर्दू के सदर मुन्तख़िब हुए तो नवाव श्रच्छन रामपुरीनें लिखा--इस हुस्ने इन्तखावपर में अजुमनकों मुवारिकबाद पेश करता हूँ श्रौर श्रापका शुक्रमुज्ार हूं कि स्रापने इस खिंदमते श्रदबको श्रपने ज़िम्मे ले लिया । हकीकत यह है कि बुरा-मला झेर कहनेवालोकी तो हिन्टुस्तानसें कमी नहीं है हत्ताकि हम जसे नाझहल भी कह लेते हे । लेकिन छेरका समभना श्रौर ज़ौके सलीम रखना ज़बानका सही ज्ौक श्रौर फसाहतका लफ्ज् ये ऐसी चीजें हे कि गैर शायर तो क्या शुश्नूरा हज़रातमें भी कस पाई जाती हे श्रौर में बिला तसन्नो यह प्र करता हूँ कि मेने यह सब चीज़ें श्रापमें कमाहकूक पाई । श्राप हो जेंसे हज्रात हक्लीकतन उर्दू सही मायनेमें खिदमत कर सकते हूं । वर्ना या खालिस फार्सीका नाम उर्दू हो जायगा या खालिस भाषाकय श्ौर हमारी उदूं उस लोचसे जो इन दोनो ज़बानोकी प्रामेज़िणसे पैदा हुआ है सहरूम हो जायगी ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now