वैदिक विचारधारा का वैज्ञानिक - आधार | Vaidik Vichardhara ka Vaigyanik - Adhar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.1 MB
कुल पष्ठ :
378
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about प्रो. सत्यव्रत सिद्धांतालंकार - Prof Satyavrat Siddhantalankar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)1. सन (सोतिकवादी रप्टिकोण) 23
अ्रष्यात्मवादी का गद्धना है कि सह झररस, झंभीतिक-तहव ही सन है जो शरीर
के यंमर में दठा इसकी गति-विधि का नियन्न्रण यारता है ।
हमने देता कि थरीर तथा. गन एसन्टूगरे से इस तरह बेंपे हुए हैं कि एक
की दूसरे के बिना सत्ता समक में नहीं श्राती । यही फारण है कि भोतिकवादी
दारीर को ही संब-फुछ सिद्ध करना चाहते हैं, मन को वियार-कोटि में से
लित्कुल निफाल देना चाहते हैं, गन को माने बिना शरीर सब-कुछ स्वयं कर
सकता है--यह सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं, उनके कथनानुसार शरीर में
मस्तिष्क--एऐप्तत--ही ऐसा यन्म है जिससे यह हगारा श्रंग-प्रत्यंग स्वयं चल
रहा है, जो स्वचालित हो, उसे चलाने के लिए दूसरे किसी--मन--श्रादि की
क्या ज़रूरत है ?
हम श्रागे यह देखने का प्रयत्न बरेंगे कि समन की शरीर से पृथक्-सत्ता न
मानते हुए शरीर को स्व-चालित-यंत्र मान कर जो दांकाएँ उठ खड़ी होती हैं
उनका भोतिकवादी क्या समाधान करते है ।
है
क्या 'मन' शरीर का ही एक रूप है ?
भौतिकवाद ने कई ऐसे चादों की कत्पना की है जिनके श्राघार पर मनुष्य
की चेतना तथा मनुष्य के व्यवहार को “'मन' की शरीर से पथक्-सत्ता माने
वर्गर काम चल सके । “सन का रथ वया है ? 'मन' एक ऐसा तत्त्व है जो
भौतिक नहीं है, जो भौतिक न होने के कारण दारीर का हिस्सा नहीं है क्योंकि
दारीर तो भौतिक हैं, जिस पर भौतिकी तथा रसायनशास्त्र के नियम लायु नहीं
होते । भौतिकवादी शरीर के भीतर इस प्रकार की किसी पुथक्-सत्ता को मानने
के लिये तैयार नहीं । उनका कहना यह है कि मनुष्य में यथार्थ श्रौर वास्तविक-
सत्ता वारीर की ही है । इस कथन का यही श्रर्थ है कि मनुप्य के विचार तथा
व्यवहार का अन्तिम स्रोत शरीर है, मस्तिय्क है--वह तत्त्व है जो भौतिकी तथा
रसायनदास्त्र (एफडंट$ छार्त टाइहापांडपिक) के नियमों से वँधा हुम्रा है, ऐसा
कोई तत्त्व नहीं जो इन विज्ञानों के प्रभाव से मुक्त हो, जैसा कि मन की पृथक्-
सत्ता मानने से स्वीकार करना पड़ता है । दूसरे दाब्दों में, भौतिकवादियों का
कथन हैं कि (क) या तो “मन' की कोई सत्ता ही नहीं, (ख) या अगर मन की
सत्ता है तो मन में जो-कुछ होता है, वह पहले शरीर में होता है, दरीर में जो-
कुछ होता है उसकी श्रनुभूति मन में होती है, उसका प्रतिधिस्व मन में पड़ता है,
मन चारीर का संचालन नहीं करता, शरीर में जो-कुछ होता है उसका अनुभव
मन को होता है, मन सिफ़े दारीर में होने वाले क्रिया-कलाप को नोट कर लेता
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