हिंदी शब्द सागर और हिंदी भाषा का एक बृहत कोश खंड 1 | Hindi Sabdha Sagar Aur Hindi Bhasa Ka Ek Barahat Kosh Khand 1`

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झजन श्शु शैजचाना झंजन-ंशा पुं० [ सें० ] [ कि० चैजवाना संजाना ] (१) रुप मता पकाने वा रोग दूर काने के निमित्त खि की पठकें के किनारों पर छगाने की वस्तु । सुरमा । काजल । क्रि० प्र०्--झुरना ।--देना ।-लगाना ।-सारना । विद्योष--श्रेजन ठगाना छियें के सोठह स्टगारों में से है । (२ रात । रात्रि । (३) सदी । रोशनाई । (४) झटेंकार में पक यृत्ति जिसमें कई ध्र्थोवाले किसी शब्द का प्रयोग किसी विशेष झर्थ में दा श्र वदद चिशेप ध्रर्थ दूसरे शब्द वा पद के याग से धर्थात्‌ प्रसंग से खुले । (१) पर्चिम का दिसान । (६) छिपकली । (७) एक ज्ञाति का ब्रगठा जिसे नटी भी कइतें हैं । (८) एक पेड़ लो मध्य-म्रदेश . चुंदेलसंड मद्रास मंसूर प्रादि में घहुत होता है । इसकी ककड़ी र्यामता लिए हुए लाल रंग की भार यढ़ी मज़बूत होती ऐ | यदद पलों प्रैर मकानों में ठगतती है घर इसके घसबाव भी घहुत से यनते हैं। (8) सिद्धांजन जिसकें छगाने से कट्दा जाता है कि ज़मीन में गड़े सुज़ागे दे पढ़ते हैं । (१०) एक पर्वत का नाम । (19) कह से उतपद्ध एक सप का नाम । (1२) लेप । (१३) माया 1 वि० काला | सुरमद्दू 1 श्रेजनकेश-हंशा पुर [ सं० ] दीपक । दीया 1 चिराग 1 ंजनकेशी-संश्ञा छी० [सं ] नव नामक सुगंघ-द्रव्य जिसके जलाने से भच्छी महक उ्ती है । ही अंजन शलाफा-संशा छी० [ सं० ] ध्रींजन वा सुरमा उगाने के लिये जस्ते था सीधे फी सलाई । सुरमचू । झंजनसार-वि० [ सं० भशन न सापन ] सुरमा उगा हुआ 1 भजन युक्त । घेजा हुआ । जिसमें धेजन सारा या ठगाया गया हो। उ०--एक से नैगा मद मरे दूजे झंजनसार । ए धौरी कोड देत है मसगारे इथियार । ्ि शंजनदारी-संज्ञा लरी० [ से० भ्रशन न कार ] (१) प्रातति की पलक के किनारे की फुंसी। धिलनी । गुददाजनी । युदाई । भ्रेतना। भूगी। (२) एक प्रकार का दढ़ने वाला कीढ़ा जिसे कुम्दारी वा बिडनी भी कहते हैं । पद पाप दीवार के कोनें पर गीली मिट्टी से श्पना घर बनाता है । कदते हैं कि इस मिट्टी को घिस कर उगाने से झाँल सी पिटनी अच्छो हा जाती है। दुसी कीड़े के विपय में यह भी प्रसिद्ध है कि पद बूसरे कीड़ीं को पंडड़ कर झपने समान का लेता ए 1 वष्न-मद गति कीद भय की नाई । जईें सह मैं देसी सपुराई ।--सुबसी । झजना-रंगा छा [ सं० ] फुंबर नामक चंद्र की पुत्री चार करारी चाली एक लाल छोटी फुंसी जिसमें जनन झोर सूई चुभाने के समान पीड़ा द्ोती है। विलनी । श्रेजनहदारी । गुदांजनी । (३) दो रंग वी छिपकली 1 क संज्ञा पु (१) एकाशाति का मेटा घान जो पदाड़ी मदेशों में पैदा दाता ऐ। ऋ क्रि० स० [ है शर्त ] देर ध्ाज़िनार । व्रेजना द्रि-संज्ञा पुर [सं० ] श्रेलन नामक पर्षत्त जिसका उपलेख संस्कृत मंधों में है । यह पश्चिम दिशा में माना जाता है । अंजनानंदन-संज्ञा पु० [सं०] श्रेजना के पुन हजुमान । ्ेजनी-संहा स्री० [ सं० ] (३) हनुमान की माता भ्रेमना । (२) माया । ( ३ ) चंदन लगाए हुई सखी । ( ४ ्र एक का झोपधि। चुटकी । ( १ ) विटनी । ध्राखि की पढछक की फुड़िया । श्रेज्वार-संज्ञा पुं० [फा०] एक पैघा जिसकी जड़ का काढ़ा ्रौर शरबन दकीम लोग सरदी घर कप के रोग में देते हैं । झंजर पैंजर-संज्ञा पुं० [से० पर] देद का बंद । शरीर का जोए़ । ढदरी । पसली । मुद्दा०--ढीछा दाना न शरीर के जेशीं का उखइना वा हिंश जाना । देह का बंद बद टूटना । शियित्त देना । लस्त होना । क्रि० बिषनग्रगठ चगछ । पार्स्व में । ब्ेजठ | संझा पुं० [सि० भ्रजलि] देना इपेलियों को मिटा कर ्रेजलां | गनापा हुआ सैपुट वा गड्ढा जिसमें पानी वा भार कोई बस्तु भर सकते हैं । उ०-भ्रंमल सर थाटा साएँ फा | येटा जीव माई का । [ फ़की्ों फी येश्ली 1 ] अंजली 1 रु स्री+ [सं०] (१9 दोनों इयेलियें को मिलाकर ैंजली | वनाया हुझा संपुट । दोनों देलिये को मिछाने से घना डुभना पाली स्वाव या गदढा जिसमें पानी वा और कोई घस्तु भर सकते हैं। ( २ ) उतनी बस्तु जिननी एक शेसुली में झाचे 1 प्रस्थ । कुदूव । दो प्रमति । पक नाप जो पीस मापषी तोने था सेठ प्ययवददारिक तोले घ्रथवा एक पाय फे मरापर देती हैं । दो पसर | (9 घन ही राशि में से ह। से नाई ्रेजलिगत-वि+ [सेब] (१9 भंजती में भाषा हुमा | हाथ में पढ़ा हुभा । दोनों इपेलियें पर सका हुधा 1.( २ हाप में चाया हुपा । प्रात । झंजलिपुट-इंडा पुं० [छ०] दोनों इयेलियों छा सिखाने से पता हु गाली श्यान जिसमें पानी था और काई यस्दु भा सरने दि । घंमली 1 नामरू पैद्र की सी जिसके गर्भ से इनुमान उप्र हुए ये ( ंजलिपद्ध- वर हिंग पाप चोहे दूर । दलुमान की माता । फ्दी दीं चेजना को मातम की पुत्री | जयाना-छिब सर हू सेन पहन ह चेतन खसवाना 1 सुरगा भी छिया है | (२) चाप की पटक के किनारे पर दानि- न्टराघाना 1




User Reviews

  • rakesh jain

    at 2020-12-08 12:44:33
    Rated : 8 out of 10 stars.
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