भारतीय संस्कृति के रूप रेखा | Bhartiya Sanskriti Ki Ruprekha

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : भारतीय संस्कृति के रूप रेखा - Bhartiya Sanskriti Ki Ruprekha

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about गुलाबराय - Gulabray

Add Infomation AboutGulabray

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
संस्कृतियों का सम्मिश्रण २३ हूं । उनकी भक्ति में जाति-पांति का वन्धन नहीं है । बह सबके लिये सुलभ हूं । जाति-पांधि के वन्धन जो बीच में खड़े हो गये थे उनमें वृष्णव लोग कुछ गेथिल्य ले भ्राये । महात्मा सांधी का प्रिय गीत जिसके रचयिता नरसी महता हैं वेपष्णवी मनोवति को अच्छा दिग्दर्धन कराता हैं । वष्णव जन तो तन कहिये जे पीड़ पराई जाणे पर दुःख उपकार करे तो ये मन श्रभिमान न श्राणे रे । सकल लोक मां सहन बन्दे निन्दा न करे केनी रे । चर इस प्रकार चेप्णव भावना भवित से भर पूर ब्रौर सेवान्परायण थी | केवल शान्त लोग ही पशु बलि के समथक हूं । स्पलसानों की देन --मुसलमान लोगों ने भी भारतीय संस्कृति पर श्रपना छाप छोड़ी किन्तु प्रायः ऊपरी बातों पर । ससलिम संस्कृति ने मू्तिपूजा को ठेस पहुंचाई । उनका कार्य विध्वंसात्मक रहा । कवीर से लगा . कर स्वामा दयानन्द तथा राजा रामसोहन श्रादि से जो सूर्तिपूजा क विरोध किया उसमें विध्वंसक प्रभाव की अपेक्षा सुघारक प्रभाव झधिक था मुसदमानी साम्राज्य के साथ एक सम्मिलित व्यापक राज-भापा का प्रचार हुआ । प्रात्तीय भापायों को बिश्षेप कर हिस्दी को भी प्रोत्साहन मिला | प्रारम्भ मं हिन्दी और उर्द सें थिशेष भेद से था ) न्ध्स ्थ भारत मे चाहें पहले पी का कोई रूप रहा हो स्त्रियां मंह पर शव- गुण्ठन डाल कर चिकलती हों श्र राज घराने की स्त्रियां चाहें. श्रसर्य पथ्या रही हों किन्तु पढें का प्रचार जैसा मुसलभानी समय में हमरा वसा कभी नहीं हू इससे भारतीय जीवन विशेषकर नारी -जीवन पर नहुत प्रभाव पड़ा | क् श मुसलमान प्रभाव से जहां बाहरी शिषप्टाचार चढ़ा चह्टीं शहरी विदा-




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now