नारीदेहतत्व | Nari Dehatatv
श्रेणी : स्वास्थ्य / Health
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.77 MB
कुल पष्ठ :
98
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)परिच्छेद ४. (१९9
चतुर्थपरिच्छेद ।
सदवास ।
इश्वरकी असीम सामध्यंसे इसमकार आश्वयभावसे मनुष्यका
जन्म भकरण स्थिर हुवाहै । मनुष्यजाति नष्ट न होजाय. इसलिये
उसने मय वृ्तियोंकी अपेक्षा मनुष्यके हृदयें कामदानि अधिक
नेज कीट । मनृष्यके ध्वंसके छिये अनेक उपायदें. अनेक उपायसे
मनुष्य मरताहे, अतिपृहूर्ची मनुष्य मरसकताहै. इसप्रकारकी
अदस्थामें कामको इतना मवठ न करनेमे एकदिन मनुष्य जातिका
लोप होजाता । जो जो भंग इश्वरने डसकायेगें नियुक्त रकसेहें;
उनकी गठनपरणाठी ऊपर संपंपसे लिखी गईहडे । किन्तु वह
उस उस अंगमें उत्पन्न हुवा वह इकडां ने होनेसे मनृष्यका जन्म
नहीं होता । मनुष्य जातिका लोप न होजाय, इस कारणदी मनु-
'प्यके दृदयं सी पुरुप--के सहवासकी इच्छा इननी पबलहे ।
। कर पहिंटेते! हम यही लिखेंगे दिए, स्वाभादिक सहवास किसको
।फहोंदं । फिर किम अवस्थामें सहवास करना कर्चेव्यहे, सहयासकी
/ शपिकता ओर अल्पताने कया हानि होतीहे, इत्यादि दिपय
2पीऐ दिखेंगे ।
* दावों कासदान परप अपेका बहुत कम । कनुव कड़े दिन परे
>तवार पद ट्नितय: उन बामसदोति मदल रहती, इसके पाछे एकराररी नहीं
गाने शोर पिना उसेजित परनेरी च्टा वियुए उलेजित नहीं होनी ।
> उपर कृष्ण चर पदन्दचस लिलिय थे पके का हे, (उचुना हा,
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