मुग़ल दरबार भाग 3 | Mugal Darbar Bhag 3
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.59 MB
कुल पष्ठ :
675
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मुंशी देवीप्रसाद - Munshi Deviprasad
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( है. ) ही में पैदा हुआ था और सीधे ईरान से यहाँ आया था । पिता की सृत्यु पर उसका सनसब एक हजारी १००० सवार का हो गया और वबरार में बालापुर का फौजदार नियत हुआ ३०वें वर्ष ( सन् १६५६-५७ ई० ) में वरार के अंतगंत बाकाघाट के जफर नगर का ठु्गध्यक्ष रहते हुए सर गया । एरिज खाँ जो क़जिलवाश खाँ के पुत्रों में सबसे योग्य था तथा अन्य चार साई हिंदुस्तान में एक पेट से पेदा हुए थे । पिता की स्त्यु पर एरिज खाँ डेढ़ हजारो मनसब और खाँ की पदवी पाकर अपने पिता के स्थान पर अहमदसगर का अध्यक्ष नियुक्त हुआ । मिर्जा रुस्तम संगमनेर का फोजदार हुआ जिसे औरंगजेव के समय में राजनफर खाँ की पद्ची मिली । सिजों चहदरास चाछाघाट बरार के देवछ गाँव का थानेदार नियत हुआ ओर औरंगजेब का पक्ष लेने से इसे पिता की पदुची सिछी । सिजों हाशिम चिद्या तथा लेखन कला में योग्य था । मुहम्मद रज्ा अल्पवयस्क था । क्जिलवाश खाँ के सगे छोगों में एक मिर्जों सिकंद्रवेग था जिसका पिता सुलतान चायसनकर उक्त खाँ का चचेरा भाई था 1 यह शाह अव्वास सफूवी की ओर से मक़ाजेरू का दुर्गीव्यक्ष था। यह ठुग॑ ईरान की सीमा पर है। शाह सफी के समय रूमियों से युद्ध करने में इसपर दोप ढगाया गया और इसे व्यथ प्राणदृंड सिखा । इसका चड़ा पुत्र कैद होकर रूम गया था १. औरंगजेब के समय अछाइवर्दी खाँ के एक पुत्र को भी गजनफर खा की पदवी मिली थी जो सन् १६६७ ई० में मरा था | इसके याद मिर्जा रुरतम को यद्द पदवी मिली होगी ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...