जहा लक्ष्मी कैद है | Jaha Lakshmi Keyd Hai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक कमजोर लड़की की कहानी २६ “कहिए, अ्रव श्राप भी अपनी जरूरी वात कह डालिए । जितनीं भी जरूरी वातें हैं सब श्राज ही मेरे सिर पर थोप देना सब लोग, कोई चने न पाए ।” उसने तलखी से कहा । वह श्रपनी वात कहने के लिए साहस इकट्ठा कर रही थी, लेकिन इस वात से उसने पलकें ऊँची करके प्रमोद को देखा तो उसकी ठोड़ी ब्रौर होंठ काँप रहे थे जैसे खाल के भीतर संकड़ों सुइयाँ एक साथ उठ- गिर रही हों । वह एक क्षण चुपचाप खड़ी रही, फिर ज़रा सकुचाकर वोली, “तो मैं चलती हूँ !” वह मुड़ पड़ी । “अरे, उस ज़रूरी बात का क्या हुमा ?” चौंककर उसने पुद्धा । सविता की चाल एक क्षण को ठिठकी । बिना मुड़े हो उसने कहा, “नहीं, कुछ नहीं ।”” “'रुको ।” प्रमोद जोर से वोला श्रौर एक ही भऋटके में उसके पास श्रा गया । उसकी वाह पकड़कर रोकते हुए कहा, “बोलो” ** !”” ह कुछ नहीं बोली, दूसरे हाथ से उसकी कसी उंगलियों को वाँह से हटाकर छुड़ाने का प्रयत्न करती रही । उसने गरदन दूसरी श्रोर मोड़ ली । मेया'**!” उसने कहां, शरीर श्रगले' दाव्द जेसे प्रयत्न करने पर भी उसके गले से निकले नहीं । वह एकदम श्रपना सिर प्रमोद के कन्घे पर रखकर फफक पड़ी । चिंस्तित-चकित प्रमोद स्तब्ध रह गया । सिफ़े एक बंका उसके दिमाग में गूंजती रही--कोई झ्रा जाय तो ! उसकी समक में इस श्रप्रत्याद्ित विस्फोट का कारण नहीं श्राया । फिर भी उसने सान्त्वना के लिए उसके सिर श्र वालों पर हाथ फेरकर थरथराते गले से कहा, “श्रब वोल नर ः “तुम मान क्यों नहीं जाति प्रमोद जैसे ऊपर से नीचे तक सन रह गया । उसने उसके फंले बालों को पकड़कर श्रपने कन्वे से चिपका सिर उठाया । बड़ी कठिनाई से उसने.




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