मीरा की भक्ति और उनकी काव्य - साधना का अनुशीलन | Meera Ki Bhakti Aur Oonki Kavya Sadhana Ka Anusheelan
श्रेणी : धार्मिक / Religious, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
145.76 MB
कुल पष्ठ :
418
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. भगवानदास शास्त्री - Pt. Bhagwandas Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पढ़ा है । इनमें से चुतनतम प्रबन्ध बम्बई विश्वविद्यालय के गुजराती विभाग में मीरां जीवन अने कवन शीर्षक के अन्तर्गत सन् १६६० में पी-एच० डी० के लिए स्वीकृत हुआ है । प्रबन्ध लेखिका-श्रीमती निर्मलाबेन लालभाई कावेरी ने लिखा है कि-- सीरांना स्वहुस्ते लबायेल कोई प्रत आज सुधी मलो नथी तेमज जता जीवनशाल दरम्यान के त्यार पछी तरतज कोई भक्ते अेना पदों लखी लीघां होय अनु पुस्तक के प्रत पण सल्या नथी घणा लांबा समय सुधी अनां पदों कंठस्थज रा हुतां मीरोां नो वास अंक स्थले स्थायी न हुतो मेड़ता मेवाड़ वृदावन अने गुजरात सां में फरी हती अने आजे जेनां पदों राजस्यानी ब्रज खड़ी बोली हिन्दी ने गुजराती मां मली आवे छे अेटलु ज नहीं पण पंजाबी सराठी अने बंगालों भाषा मां पण जता पदों गवाय छे. ग्ाक्क का सीरां जे क्या पदों क्यारे अने कई साा मां रच्यां हुशे थे कहेवु मुश्केल छे सोरां सदंहे आजे पुथ्वी पर पाछी आवे तो पर पोते रचेला पदोमांना केटलांक पदोने भखखी न दाके अटलो फेरफार अना पदों सां थयो छे. स्पष्ट है कि सन् १९६० तक मीरां की सुल पदावली पर अलुसंघानकार्य नहीं हुआ । इसीलिए इस समय तक प्राप्त ऐतिहासिक तथ्य जनश्रुतियों किम्बदन्तियों मौखिक परंपरा और साधु-सन्तों व संगीत-प्रेंमी गायकों के हस्तलिखित प्राचीन गुटकों और चोपड़ियों के भजनों अथवा प्रकाशित पदों को हो जो है सो है मानकर चलने वालों में मौरां के बारे में इतने मत-मतान्तर फैले थे कि मीरां की भक्ति और उनकी _. काव्य-साधना का अचुशीलन एक आवश्यकता ही वहीं अनिवायंता थी । मीरां के पदों का संकलन मैंने सन् १९४५० से शुरू किया था । प्रारम्भ में मेरी. यह इच्छा थी कि मीरां के यथोपलब्ध पदों को संग्रहीत कर प्रामाणिक मीरांनपदावली संपादित कीं जाए पर ज्यों-ज्यों मैं मीरां के पदों की विविधता और मीरां-समीक्षा- साहित्य की गहराई में उतरता गया ट्यों-त्यों मु मीरां पर सर्वागीण गंभीर अध्ययन और अनुशीलत की आवश्यकता महसूस हुई । पूज्य पं ० नन्ददुलारेजी बाजपेयी और डॉ० शिवमंगर्लासिह् सुमन से मैंने मेरी मनोदशा का निवेदन किया । सन् १६४०. से १९४५४ तक पढ़ते-पढ़ते मैंने यह जाना कि मीरां की मूल एवं प्रामाशिक्र पदावली की अनुपलब्धि ही मीसं-सम्बन्धी स्वस्थ समीक्षा-साहित्य के एकॉंतिक अभाव का. कारण है। सभी. सम्प्रदायों में भाज जो मीरां के नाम पर पद... १. मीरां जीवन मने कवन --डॉ० निर्मलाबेन लालभाई भावेरी टंकित प्रति बम्बई कक विश्वविद्यालय-ग्रस्थालय प्रस्तावना पृष्ठ २९ ।
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