शरत-साहित्य भाग 13-14 | Sharat Sahitya Bhag 13-14

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Sharat Sahitya Bhag 13-14  by धन्यकुमार जैन - Dhanykumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“बंबक्ते दावेदार ३ उचित समझा, वेस! ही जवाब दे दिया । बोला, “' टूँदनेपर मिल सकता है, मगर इतने किरयेपर ऐसा मकान मिलना मुश्किल है । ” अपूर्वने फिर कोई बात नहीं की, दरबानके पीछे पीछे कुछ दूर चलकर वह एक जज पोस्ट आफिसमें पहुँचा । मद्रासी तार-बाबू उस समय टिफिनके लिए गये थे | घंटे-मर बैठनेकें बाद जब उनके दर्शन हुए तब घददीकी ओर देखकर उन्होंने फरमाया, '“आज छुट्टीका दिन दे, ऑफिस तो दो ही बजे बन्द हो चुफा अब तो दो बजके पन्‍्द्रद मिनट हो रहे हैं ! अपूचन अस्यन्त नाराजीके साथ कह, ” यह कसूर आपका है, मरा नहीं । में घंटे-मरसे इन्तजार कर रहा हूँ । उस आदर्मीने अपूर्वकें चेट्रेकी तरफ देखकर बिना किसी संकोचके कहा, *' नहीं, में सिप: दस मिनट यहाँ नहीं था । ”” अपू्ने उसके साथ काफी झगड़ा किया, झूठा कहकें उसका तिरस्कार किया, रिपोर्ट करनका डर दिखाया, सगर कुछ नहीं हुआ । चहद निर्विकार चित्तस अपना रजिस्टर और कागजात दुरुस्त करने ठगा ! उसने जबाब तक देनेकी जरूरत नहीं समझी । अब समय नष्ट करना व्यय समझकर अपू्व भरूख-प्यास, और क्रोघसे जठता-भुनता बड़े टेलिग्राफ आफिसमें पहुंचा | वहां भीइमेसे किसी कदर भीतर घुसकर जब बहुत देर बाद अपने निविन्न पहुंचनेका समाचार माकी भेज सका, नव दिन छुपनेमें ज्यादा देर ने थी | दुष्खके साथी दरबानने अर्ज की, ” साहब, मुझ मी बहुत दूर जाना दै । अपूर्व बहुत दी परशान और अन्पमनस्क दो रहा था,--खछुट्टी देनेमें उसने नई आपत्ति नहीं की | उसे भरोसा था कि नम्बर-वार्टी सकें सीधी और मान दोनेसे मकान टूँढ लनेमें काई दिकत न होगी । दरबान अन्यत्र चला गया, और वह प्रेदल चलता हुआ तथा अपनी सड़कका हिसाब लगाता हुआ अन्तमें अपने मकानके सामने आ पहुंचा । सीदीपर कदम रखते दी उसने देखा कि दुर्मेजछेमें अपने दरवाजेपर खड़े हुए तिवारी-मद्दाराज अपनी लाठी टॉक रहे हैं और अनरगंल बक रोे हैं; उधर विमैजलेस प्रतिपश्षका एक व्यक्ति पतदून पहन खुछ बदन अपने कॉठेकी खिड़कीके सामने खड़ा हुआ हिन्दी और अँगरेजीमें उसका जवाब दे रहा है, और बीच-बीचमें घाड़ेके चाबुकसे सॉय-सौय आवाज कर रहा है! तिवारी




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