श्री चैतन्य भागवत | Sri Chaitanya Bhagvat

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Sri Chaitanya Bhagvat by बाबू वृन्दावन दास - Babu Vrandavan Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ ] # श्राचंतन्य मौोमवत ऊ [ आदि खंड अध्याय मार मक्त र पूजा श्रामा देत पड. सेड प्रश्न वेद भागवत कैला देट ३ तथाहि-मा० १११६९१ मद पूजास्यधिका एतेके करिल आगे भक्त र बन्दम । अतएवय शाछ काय सिद्धि सच 11211 इ्ट देव बन्दों मोर नित्यानन्द राय | चंतन्य-कोचेंन स्फूर जाहार कृपाय 11 सहस्न-बदन बन्दों प्रम बलराम 1. जहार सहख्पुख ऋप्स-जशा धाम 115 जे प्रभु चेतन्प-जश सहसेक मुखे । याइते आन प्रश्ु संक्रपंछ छुपे 11७ महा रत्न थइ जेन महाप्रिय स्थाने । जशो रत्न भागडार श्री अनन्त बदन उतव झागे बसरामेर स्तवन । करिसे से मुख स्फुर लतन्व काराल ॥&॥ सहस के फणाधर प्रभ बजराम । जतेक . करयं प्रमु सकले उदाम 12 ८1 हसबर महाप्रभ प्रकारड शरीर | चतन्य चन्द्र रस मत्त महा घोर 1 ११ ततोघिक च तन्येर प्रिय नॉहि आर । सिखधि से दहे करन विहार 1१९ ताहान चरित्र जेबा जने शुने गाय । थीकृप्ण च तय तार परम सहाय ॥ १ ३1 हा प्रीत हन ताँने महेश पार्वती । जिह्माय स्फुरये तार शुद्धा सरस्वती ॥१४॥ पावंती-प्रभति नवावु दे नारो लंया । सडपंथ पूर् शशि उपासक हइया । रै ३8 पथ्चम स्कन्घेर एड भागवत कथा । सब घष्सुघर चन्य बलराम गाथा ॥ दूं कलकनव हूँ जोंकि भीविश्वस्भर सास घारणु से श्रीनवद्दीप में झचतीणं हुए 1९ सेरे सक्त की पूजा सुना यड़ी है यह धात प्रसु ने बेद एवं भागवत में ृद़ की है | ३ 11 रे सक्त की पूजा सुकत से अधिक हू ।। इसलिये पहले भक्त की वन्दना की हे तएव यह कार्यलिदि का लक्षण है 121 पश्चात्‌ छापने इएदेव भीसिस्यासरद- राय प्रमु की बन्दना करदा हूँ जिनवी कृपा से औी चैतन्यचन्द्र के लास ूप रुग्य एवं लीला की्टील की स्कूर्ति होती है ॥ ४1 ( अभिन्न नित्यानन्द ) सदस्र बदन प्रभु बलराम की वन्दना करता हूँ जिनके सहस्त्रीं सुख शीकृष्ण-यश के निवास स्थान हैं । अतएव मारडार स्वरूप हू ॥द॥ जो भू औसंकपण रुप घारण कर छापने सइस्र मुख से श्रीचेतन्यचन्द्र का यश गा रहें हैं ॥ ७ ॥ जिस प्रकार सहारतों को अपने प्रिय के पास रफयों जाता हे उसी प्रकार से यश रत्त-साएडार आदसन्त के वदन में रखा दै ॥ ८ ॥ अतणव प्रथम प्रशु सस राम का स्तब करने से स्ववनकारी के सुख में औचैतन्यचन्द्र की स्कूर्ति होती है ।। ६ ॥ सहस् फगएधारी म्रभु वलराम हू श्रीअनन्त रूप में झाप जो कुछ करते हैं सब प्रेमोन्सद से पूणण है तप वे विधि-सिपेय के लीन हैं १० || श्री इलघर महाप्रमु विशाल स्वरूप हैं श्रीचैतम्यचन्द्र के रस में मत्त एवं मद्दाधीर हैं ॥ ११ ॥ उनसे अधिक श्रीचंतन्यचम्द्र का और कोई प्रिय नहीं है बाप निरस्तर उस देह में विहार करते हैं ॥ १२ | जों कोई उनके चरित्र अवण एवं यास करते हैं.उनकी आीकृप्णचतन्य परम सहायता करते हैं [1१३५ उसके प्रति सदेश पायती जी सहाद प्रीति करते हैं एवं उसकी जिह्ा पर शीसरस्वतीजी की स्फूर्ति होती दै। १४01 आीशिव- जी भी पावंती आदि नौ अरव नारियों के साथ भक्ति-पूर्वक ओऔसझुर्पणजी की पूजा करते हैं । १५ यद्द कथा श्रीमागवत के पड़ स्कन्घ में वर्णित है। शीबलरामजी की कथा सच वैष्णुवचून्द द्वारा वर्दनीय हैं 12 दू॥।




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