प्रसाद के ऐतिहासिक नाटक | Prasad Ke Etihasik Natak
श्रेणी : इतिहास / History, नाटक/ Drama
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.44 MB
कुल पष्ठ :
403
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जगदीशचंद्र जोशी - Jagadish Chandra Joshi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इतिहास का स्वरूप और उसके मूल उत्स इतिहास का सामान्य श्र भूत काल की घटनाश्रो का श्रौर उन घटनाओं से सम्बन्धित स्त्री पुरुपो के चरित्नो का लिपिबद्ध स्वरूप है इसलिये सदा हो इतिहास का सम्बन्ध नाम घटना श्रौर तिथियो से जोड़ा जाता है । श्रत्यन्त प्राचीन काल से इतिहास शब्द श्रपने इसी सामान्य श्रर्य में प्रयुक्त होता थ्रा रहा है किन्तु सुल रूप में उक्ल अथ देने पर भी इतिहास रचना के स्वरूपों श्रौर उनकी व्याख्या में समय समय पर परिवतन होते रहे है युगो-युंगो की विचारधाराएं श्रपने बहुमुखी स्त्रोतो में भिन्न-भिन्न रूपों में प्रवाहित होती रहती है । उनकी भ्रभिव्यक्ति के स्वरूपो झौर उसकी प्रणालियों से भी श्रन्तर होता रहता है । प्राचीन इतिहास- कार के सम्मुख इतिहास प्रधानत व्यक्तिपरक होता था वह महत्वपुणा व्यक्तियों सम्नाटो भ्ौर साम्रांतियो सेनापत्तियों तथा राजनीतिज्ञों एवं तेजस्वों राजपुरुषों तथा धामिक मठा- वीशो के श्रच्छे श्रथवा बुरे क्रिया-कलापो का लेखा जोखा मात्र था । उसमें युद्धो राज- नीतिक पडयन्नो धार्मिक विद्वोहो इत्यादि की सुचना भर होती थी । यही कारण है कि जान रिचार्ज ने इसको ढोल श्र तूर्य॑ का इतिहास कहा हे उक्त इतिहास ठोस तथ्यों का इतिहास था उसमें व्यक्तिगत उद्देश्यों की चर्चा के साथ प्रेम भर घ्रुणा श्रसफलता सहत्वाकॉक्षा और श्रध पतत एव मंत्री श्रौर विरोध की कहानी होती थी । परन्तु कालान्तर मे इतिहास के दृष्टि कोर मे भी एक. महत्वप्रणं परिवतंत्र आया य्राबुलिक इतिहासकार के लिये इतिहास का सम्बन्ध केवल व्यक्तियों से नहीं हैं नये इतिहास का भी एक दर है जो एक ग्रोर तो विष्लेषपणात्मक एवं तक पुण विवेचना के छोरो को स्पशं करता हे झोर दूसरी ओर सच्लिष्ट प्रभाव की व्यजना को मानव समाज के अ्रपख्प घात प्रतिघात में झाधुनिक इतिहासकार ऐसे चिरन्तन नियमों का श्रन्वेषण करता हैं जिसका सम्बन्ध व्यक्तिविशषेष श्रौर काल विशेष से न होकर मानव सभ्यता के खिरतन एवं शाश्वत सत्यों से है । श्राज का इतिहासकार इतिहास को काल खड़ो में विभाजित करके ही सतुष्ट नहीं हो जाता उसका दृष्टि कोण उस दाधंनिक का सा होता है जो मानव जीवन के इतिहास के भ्रादि मध्य श्रौर श्रन्त को स्व॒तन्न न मान कर काल की श्रविड््छिन्न धारा के रूप में देखता है वह इस तथ्य को स्वीकार नहीं कर सकता कि किसी भी ऐतिहासिक युग में घटित महत्वपूर्ण परिचतन श्रथवा क्ातियाँ एकाएक हो जाती हैं उसकी हृष्टि में ऐसे किसी भी परिवतन का कारण उस युग से पूर्व के युगी में श्रवस्थ निहित होता है इसीलिये श्राज का इतहासकार एक सच्चे वैज्ञानिक एवं दाशंनिक की तरह कार्य कारण परम्परा के सूदम विवेचनो द्वारा प्रत्येक देश श्रौर काल के ऐतिहासिक स्वरूपों श्रौर परिवतनो पर विचार करता है । दल यह जी लक या या काओं ििपएए ऑसटिक नाग १ हिस्टी श्राफ ड्रम एड टू मट इगलिंदा हिंस्ट्री इन दोवपीयर । मेरियट प्र० १३ १४ ।
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