श्री जैन ग्रंथावली | Shri Jain Granthawali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है | भस्तावना शक्तिए एकाद प्रंथ पण न लखे ए बनवुं असंभवित छे पण बखतो वंखंत देंशमां पडता दुष्काठथी राज्यक्रांतियोथी तथा धममना झगडाने छइने थतां तोफानोथी आपणा अपूव ज्ञानीओनां बनावेठा अंथो आपणने मी झकता नथी. आ विषयमां दजु शोध करवानो घणो बाकी छे ने हाठमां मछता अ्ंथोनों बचाव करी कोन्फरन्स ते तरफ पण ध्यान आपवा धारे छे प्रथम आ शोधनुं काम पूरु न करवानुं कारण भा प्रमाणे े. जनसमुहने तारवा तथा तेमने सत्यमाग बताववा जेमणे पोताना आयुष्यना छेडा- सुधी प्रयास करेलो अने जेमनुं ज्ञान अगाध हुं एवा महात्माओ प्रंथो न लखे एम तो बनेज नहीं पण ते वखते छापखाना बविगेरेना अभावे लखेठा अंथनी एक अगर बे प्रतो कोइ स्थठे होय अने ते अमदावादमां हाठमां जेम एक भंडारना गृहनो अपिथी नाश थतां तेमां सेकडो कींमति अने जेनी बीजी नकल भाग्यिज मे तेवा मंथोनों नाश थइ गयो तेम आवा पूरवेघर महाराजाओना बनावेला प्रंथानो पण नाश थएलो होवों जाइए एवुं अनुमान थाय छे. अने तेथी रहें साहित्य बचावी छेवानु पहेलां धार्यु छे. हालमां जे साहित्य मब्युं छे अने मठ छे तेमां आगम शिवायना बीजा घणा अंथो संवत्‌ आठ पढछीनी साठमां लखाएला मछे छे जने जो अमारूं अनुमान खरूं होय तो जि साहित्य आजे काठना राजक्रांतिना अने रक्षकोना प्रमादना कारणथी नाश थततां बचें छे. ते तमाम साहित्य बार आनीथी चोद भानी जेटढुं संवत ८०० पछीना सेकामां लखाएठ जोवामां आवे छे. बौद्धनुं पण आ समयमां पुरजोर हृतुं भगवानना समकाठीन बुद्धदेवनो मत धीमे धघीमे पुरजोरमां आवतो जतो हतो. संप्रति महाराजाना प्रापताए तेने आ देश अने बीजा देशमां पोतानी राज्यसत्ताने नीचे सारी रीते स्थापित कर्यो हतो परंतु आ देशमां आपणा धुरंधर पंडीतो विद्यमान होवाथी आपणा धमेने ते ठोको कांड नुकशान करी क्‍या नहोता. ज्ञाननी न्यूनता थता ज्ञानना घारक महात्माओ कमती थता बोधोंने पण आपणा धमेपर हो करवानुं मन थयुं. आ समय संवत्‌ ५२३ पछीनो गणवानो छे. आ समयमां शिलादित्य राजानी सभामां प्रतिज्ञापूवेक वाद थयो वादमां एवं ठरेढं के हरनारने देशपार कहाडवा. एमां बौधो हारवाथी तेओ देशपार थया एवो संभव छे विक्रम पछी कोईपण जैन राजा थयो होय तेव्रों इतिद्दासिक लेख जणातो नथी भने तेथी




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