हिंदी भाषा का सरल व्याकरण | Hindi Bhasha Ka Saral Vyakran
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.24 MB
कुल पष्ठ :
186
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लिपि €
लगाई जा सकती है--
ककाकिकीकुक्कृकेकंकोको
इसी प्रकार अन्य व्यब्जनो में भी मात्राएँ लगती हूं ।
यहाँ चार वाते विकषेष रूप से ध्यान देने को हे--
१ श्र का कोई मात्रा-रूप नही होता । जेसा कि पीछे
कहा जा चुका है शुद्ध व्यब्जन 'क' से होकर 'क्' है। कं
में जब 'भ्र' लगाना होता है तो केवल हलू को हुदा देते हैं ।
भर्थात्
कून-श्रसक
इसी प्रकार सभी व्यब्जनो का हलू हटाने के वाद जो
रूप बचता है उसमें उस व्यज्जन के भ्रतिरिक्त 'भ्र' स्वर भी मिला
होता है । जैसे ख, (खुन-अ), ग (गूनझ) तथा व (बुन-झ)
झादि ।
२. 'अ' के अतिरिक्त भ्रन्य स्वरो के मात्ना-रूप लगाने
के लिए व्यब्जन का हुलू हटाने के बाद उस स्वर की मात्रा जोडी
जाती है ।
कून-श्रास्कना सका
३. श्रा (1). ई (ही ), श्रो (हे ) श्रौर श्री
( है ) की माताएँ व्यब्जन के वाद में लगाई जाती है---
का की को को
इ ( ) की मात्रा व्यव्जन के पहले लगाई जाती है--
उ(._ )८कह(.) श्रीौरकऋ ( . ) की मात्राएं
व्यक्जन के नीचे लगाई जाती हे--
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