महापुराणम आदि पुराणम भाग १ | Mahapurana Adi Purana Part I

Mahapurana Adi Purana Part I by पं पन्नालाल जैन साहित्याचार्य - Pt. Pannalal Jain Sahityachary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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2 महाएुसाणु पातन्जल महाभाष्य (रा रद) में इस दलोकफा उत्तरार्ध प्रस पाठभेदके साथ हैं । तप श्रुतान्या यो ह्ीन जातिन्नाह्माण एव से ।” प्रादि पुराण (पर्व ३८ इलोक ४३) में यह जातिमूलक मात्यणत्व प्न्हीं प्रन्योरो श्रीर उन्हीं दाब्दोमें ज्योफा त्यो श्रा गया है- गतप श्रुतज्च जातिश्न मय ब्राह्मण्यफारणम्‌ । तप श्रुतास्या यो हीन जातिन्राह्मण एव से ।” इसी तरह प्रन्य भी श्रनेफ स्यल उपरिथत फिये जा सफते है जिनसे श्रादिपुराणपर स्मृति श्रादिफे प्रभावका श्रसन्दिग्घ रुपसे ज्ञान हो सकता है । पुन्नीको समान घन-विभाग-- प्ादि पुराण में गृहृत्याग नियाफे प्रसग्मे धन सचिभागका निर्देश फरते हुए लिया है कि- 'एकोइ्सो घर्मकार्पेज्तों द्वितीय रवगहव्यये । तुतीय राविमागाय भवत्‌ त्वत्सहजन्मनाम्‌ ॥। पुच्यद्च सविभागाहा राम पुत्र रामादाक 1” घ्र्यात्‌ मेरे धनमेंसे एक भाग घर्म-फार्यके रिये; दूसरा भाग घर सर्चफे लिये तथा तीसरा भाग सहोदरोमें वाटनेंके लिये है । पुन्रिपो श्रौर पु्नोमें वह भाग समानरूपसे वाटना चाहिये । इससे यह स्पष्ट है कि घनमें पुन्नीका भी पुत्रोके समान ही समान श्रधिकार है । उपसंहार-- इस तरह मूलपाठशुद्धि, श्रनुवाद, टिप्पण श्रौर श्रध्ययन पूर्ण प्रस्तावनासे समृद्ध यह सस्करण चिद्वानु सपादककी चर्षोकी श्रमसाधनाका सुफल है। प० पन्नालालजी साहित्यके श्राचार्य तो है हो, उनने घर्मनास्त्र, पुराण श्रौर दर्शन श्रादिका भी श्रच्छा श्रभ्यास किया हैं । श्रनेक ग्रन्योकी टीकाएँ की है श्रौर सम्पादन किया है। वे श्रध्ययनरत श्रध्यापक श्रीर श्रद्धालु विचारक है । हम उनकी इस श्रमसाधित सत्कृतिका श्रभिनन्दन करते है श्रौर श्राद्या करते है कि उनके द्वारा इसी तरह श्रनेक ग्रन्थरत्नोका उद्धार श्रौर सपादन श्रादि होगा । भारतीय ज्ञानपीठके सस्थापक भद्रचेता साहू शान्तिप्रसादजी तथा श्रध्यक्षा उनकी समदीला पत्नी सौ० रमाजी इस सस्थाके सास्कृतिक प्राण हे । उनकी सदा यह श्रभिलाषा रहती हे कि प्राचीन ग्रन्थॉका उद्धार तो हो ही साथ हो उन्हें नवीन रूप भी मिले, जिससे जनसाघारण भी जैन संस्कृतिसे सुपरिचित होसकें। वे यह भी चाहते हे कि प्रत्येक श्राचायंके ऊपर एक एक श्रध्ययन ग्रन्थ लिखा जाय जिसमें उनके जीवनवृत्तके साथ हो उनके ग्रन्योका दोहनामूत हो । ज्ञानपीठ इसके लिये यथासंभव प्रयत्तश्ील हे। इस प्रन्यका दूसरा भाग भी शीघ्ष ही पाठकोकी सेवामें पहुचेगा । भारतीय ज्ञानपीठ काशी -महेन्द्रकुमार न्यायाचाय वसन्त पब्चसी २००७ रे सम्पादक-मूतिदेवी जन ग्रस्थमाला मकाशन-व्यय १७२ री कागज रर>६ २६ र६पौ०१०र२रीस | १३९२] पारिश्रसिक सम्पादक ६९६ पष्ठ का ३७३८) छपाई ५।) प्रति पृष्ठ ६९२), कार्यालय व्यवस्था, प्रफस शो घन श्रादि २००) जित्द बंघाई १४५०) प्रधान सम्पादक ५०] कबर कागज १४५००) सेंट, श्रालोचना, विज्ञापन श्रादि १४५०) कबर छपाई तथा ब्लाक २९२५) कमीशन २४) प्रतिदात कुल लागत १३४३ १६20 ० १००० प्रति छपी ।. लागत एक प्रति १३॥)॥। ः मूल्य १३) रु०




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