शार्दूल - वंश - प्रकाश | Shardul Vansh Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका रघुनाधथसिंह कालोपहाडी मे शा । वश प्रबाश नामव पुस्तक की रचना की है । (ये शाद् ल्खिह जी के पालिमसिंह जी के वशघर हैं) इनदी इतिहास में काफी रुचि है तथां विपय में अच्छा प्रदेश है । गावों में प्रचलित मायताएं व वशावलियों का इ होने अच्छा सग्रद्ठ क्या है । पिछने सौ बर्पो का शेखाबाटी का इतिहास बाफी महत्वपूर्ण रहा है जिसका पिस्तार से लिखा जाना झावश्यक था पर तु घह् विस्तार से गद्दी लिखा गया है फिर भी पुस्तक उपयोगी है । घादू नर्मिह जी सथा उनके यशजो के कुछ सहत्वपूण कार्यो पर यहा प्रगाश डालना झंनुपयुवत नहीं होगा । घेवावाटी व] य्ामतौर से श्रौर शादू लिह जी व उनके सानदान का विशेष रुप से राजस्थान के इतिहास में महत्व रहा है । महाराजा सवाईजयसिह जी ने जव जोपपूर पर चढ़ाई की थी उस समय वी सेना को जो वणुन मिलता है । उसमे जागीरदारों की सेना की गणना जयपुर सेना मे सम्मिलित है परतु शादू लखिह जी वी ३००० घुडसवार व १८०० पेदलो का उदयपुर वीयानेर शात्परा भरतपुर नागौर व रोली चूदो इत्यादि के साथ झ्लग से वणुन क्या गया है जो उस समय के शेघाबाटी के महत्व वो बतलाता है राजा ग्रभयर्मिह जी जोधपुर व बीकानेर के राजा जोरावर सिंहजी मस १७६२ में सरहद पर मुकायना हुमा तत्र जोधपुर ने शादू लर्मिहूजी को मदद पर झ्राने को कह्लवाया । मुहता बस्तावर सिह की स्यात में लिखा है वि शादू लि जगरामोतत भारी फौज नेकर श्री जी (महाराजा चीकानेर/ के मुकावले में ध्राया । (मु ये. रपात्त पृ० १८ सभ० १८०० में बरूसिह नागौर श्र जोरावरसिंह वीवानेर में मुकाबला हुमा तब बरतसिह ने किशनसिह शेतावत को मदद पर चुलवाया पर तु ग्रत में बिना युद्ध के मामला तय हो गया /स व स्यात पृ ६)




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