अवधी - कोष | Avadhi - Kosh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18.69 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गे
घजर-झनटी |]
अधजर वि० पं० आधा जला हुआ; जा ० (पढु*
२०, ७२, २२, १४), स० छाधज्वलित |
चधस्ा सं पं ० झाघ आाने का सिक्का, स्त्री ०-ननी
स० घध + साना |
अधपडे सं० स्त्री आध पाव का तोल, चे०-वा
(पं०) सं+ अघ +-पाव (दे०) ।
घी सं० स्त्री आधी बाँह की गंजी, कमीज़
आदि, वे० हियाँ,-बादीं, स० झधे +-बाँह (दे०) ।
च्घबुद वि० पं० अधघेढ़, आधा बूढा-; स्त्री०-ढ़िं
सं० झघं +दइद्ध ।
अधघसइई सं० स्त्री अधमता; वेसे 'अधम' कस
बोला जाता है, सं० अघधस+-ई
उअधघरस सं० पं० अधमे,-करव;“दोव, दि०- सी,
दे० बेघरमी, स० |
अधवा दि० याघा, स्त्री०-दे, सं+ अरे ।
अधघबाइब क्रि सं+ आधा कर देना, आाधा बॉ या
समाप्त कर लेना, सं० अधे, वे ०-उब,-धिचा,-सं० |
अधार सं० प॑० झाघार, भरोसा, परस प्रिय या
अंतिम आधार की चस्तु, जिउ क-; जीवन झाधदार
प्रान-, समाणों का झाधघार, सं० ।
्धिआ सं० प॑ ०. एक प्रणाली जिसके झनचुसार
खेत, वाग या पु का सालिक उसे दूसरे को
सौंप देता है श्रोर उपज सें उसे श्ाधा दिस्सा देता
है,-पर देव, इस प्रकार गाय, खेत आदि देना
चे०-या, सं० अर्ध ।
किए स० प० आधा डिस्सा, व०-या-स०
घ्परघ ।
अधिय्याव क्रि० अ० आधा हो जाना, आधा
समाप्त हो जाना या चुरा जाना, प्रे०-दुब, उब
वे०-याव, सं० ।
अधिआर सं० पं० आधे का हिस्सेदार, स्त्री०-रि,
रिनि,नन, भा ०-री, वे०-यार, सं० अरे |
व्प्धिकट्टे सं० स्त्री अधिकता, वे ०-काई, सं०
अधिक +-ई।
घ््रघिकाब क्रि० झ० अधिक हो जाना, सं० ।
अधिकार वि० पुं० बहुत, अधिक, स्त्री ०-रि, भा ०-
री; झधिकता, सं० अधिक +- आर ।
घ्धघिकारी सं० स्त्री बदुतायत, अधिकता,-होब;
स० झधघिक-+-आारी ।
'प्रथधिरजी वि० खाने-पीने में उतावला एवं लालची, -
अधिक खाने वाला, जददी खाने वाला, सं०
अधघीर, अपेये + है ।
घाघीन वि० सातइत, अधिकार में, नीचे, सं० ।
ब्घेड दि० प० छाधी छवस्था वाला, स्त्री०-ढि
सं० अघ ।
'अधेडी सं० स्त्री एक रोग जो वढ़े-अडे गीले दानों
के रुप में कमर के एक ओर या कमर से गले तक
कहीं सो होता है, कभी-कभी आधी कमर में
केत्ल दादिनी ओर दी दाने होते हैं,-होत्र । संँ०
अघध ।
न
[ ९
अधेला सं० प॑० झाधा पैसा, यक-.-लौ न, कुछ
भी नहीं; घू०-लचा,-ची; सं० अं ।
च्धेत्ती स० स्त्री झाघा रुपया, अठनी, सुका;
आठ आना, चार झाना; सूका-, दे० सूका;) सं०
दे ।
धोखा दे० अधघउखा ।
््नकन क्रि० स० कान लगाकर सुनना, दूर से
सुचना, जो कठिनता से सुना जा सके उसे सुनना
कान केक एवं न का विपर्यय हुद्या है; सं०
घ्मा + करण | झकनि रास पु घारे (तु०) |
अतनछुस सं० पं० कष्ट,-लागव, बुरा लगना;-मानव
क्रि०-साव, रुप्ट होना; न्न० अनखाव, सं०
अकुश, दे० किस ।
अनकूत वि० जिसका अनुमान न लग सके, जो
कूता न जा सके, दे० कूतब, सं० अन +- कूतब ।
तनखाती वि० जो कुछ न खाय: क्रोध में न खाने
वालो के लिए प्राय, प्रयुक्त, सं०अन + खाब ।
अनगढ़ वि० जो गढ़ा न दो, खुरदरा, सं० अन+-
राढ़य (दे०) |
नगनती वि० अनणिनत, वे०-शि-, सं० अन +-
गनती [जिसकी 'गनती” (दे०) न हो] सं०
अगखित |
नगव क्रि० स० (खपरेल की छुत) सरम्मत
करना, प्रे०-गाइब,-गवाइब,“उच , वे०-ढब ।
अनगयर वि० प॑ ० दूसरा, झपरिचित; स्त्री०-रि,
ये०-गेर, स० अन ।-झअर० गैर, सं० अन+ झ०
ग़ेर (दूसरा), सं० का “झन' निर्थक है |
'नचिन्हू वि० झपरिचित,-मनई; अपरिचित व्यक्ति
-सानब, सं० अन +- चीन्द (दे०चीन्दब) ।
ततजउरा सं० पं० व घर जहाँ श्नाज रखा
जाय, झनाज का भरडार, किसी किसान की खेती
में हुए सारे अन्न की राशि, वे० झं-; सं० अन्न
+ जदर (दे० जवरा) ।
घ्य्जल सं० पं ० रहने का अवसर, दोब,-रहब,-
पानी, निवास, सं० अन्न + जल (भोजन या जीवन
की दो आवश्यकताए ), दे० दाना-पानी।
अनजह्ा वि० पं ० जिससे झनाज पढा दो (भोजन;
सिठाई थ्रादि), जिसमें अनाज रखा जाता हो
(बर्तन), स्त्री -दी, वै० झंज-, सं० अन्न ।
घ्प्लजह्दी सं० स्त्री अनाज देने का कारबार, सूद
पर अनाज भी उधार दिया जाता है,-चलव, दे०
विंसरदही, विसार, सं० ।
घ्यतनजाद सं५ पं० झनुसान, फा० “अन्दाज़” का
विपर्वय, वे५ अजाद, क्रि०-दव, दे? अनदाजब ।
नजान वि० न जाना हुआ, में, अज्ञान की स्थिति
में, बिना जाने, सं० अशान ।
प्प्रचजाने क्रि० दि० बिना जाने, सं० अज्ञाने ।
अनटप सं० पुं० मनसुदाव, भीतरी बेर, अज्ञात
बैर, राखव, स० मंतः ।
घ्यूनूटी सं० सन्नी घोती का वह भाग जा कमर के
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