राजस्थान इतिहास | Rajsthan Itihas

Rajsthan Itihas by बलदेवप्रसाद मिश्र - Baladevprasad Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गम ्‌् दि फनी | कन्यीें पग धन - चकि ज है रा द उन क कक बल कै ं 1 अं कु । न ना. फडाजदहंडर .. कल पट न. नव सवररिवनशलारमिसपक इस्फेकच्डि ल्लििनलुेदडितररर देने नकन है हर द्ौ व व द ई | पद सदन पद न. दे डे न जन 5 ६ गे दे कं ई. न न्न लि्ा गए हनन दि कि हक । कि. की ज्य्ट कि) डर एजन्करएएकरफिसिेश्ठ चिपक के पर केस य्शिसीन रे इु्र. झ्फिल इज. हि - इसने इलीन्ट ) 3 स्किप हु न पं ू कस क कर ६ २४ ) रोजस्थ न || ४ पु नह नवमी बैक हिट न्नेन्वकनण पी शेरिल रिवततनफिक जाग पिरोध लि नहेडलांट सस्त नी वन है युन्शा दो अपिकाव थी + गे धन कुणएन्ट्राप्टि हा का न कह. इडिड्ार नहर टुलन्नन यु रेल -.. जो मतुप्यकी बोखघाउं खासपान पहुनाव सबसे स्वयं सिंध्रेत रहता है ककेंसी घर वा किसी जातिका ठेखक अपनी ठेखनीसे विपश्चियोंकी प्रशंसा नहीं करते तो कठोर आछोचना भी नहीं करते वे अपने लद्॒शुणका यहीं पारिचथ देसकतिः हे परतु जिन विद्वानोनि भारतके हित अर्माइित पर छुछ ध्यान न देकर केसर एक दूसरेक आधारपर वां छायामाचपर स्वतन्त्र लेखें छिख डाले है बह ठेख कंत इस दशाका विचरण देनेवाल इतिहास फहे जासकते हैं तिसपर भी मेक इतिहास तो मिरंतरी गणोंकि (नाते हैं थे तो विशेषकर इसी अभिष्रायस निर्माण किये गये हैं कि हि डक हैं कि हिंदू जाति अबाघ बाछक उन्हींसे ज्ञान प्राप्त करके अपने पिठण्यांकों सांसाहारी न्ाह्म- णॉंके दाधका खिंछाना तथा मूखें जानते रहिं और अपने घरकों न पहचानसेवाखे घर्सकी भांति जद्दांतह्दों अटकते फिरें । पाठ्य पुस्तकॉसें जो इतिहास हैं बह बहुधा इसी प्रकारके हैं और उनका प्रसाध जो हिंदूँ सन्तानपर पढ़ रहा हे वहें प्रत्यक्ष है अंग्रेजीसि अपरिचितः भारतवासियों के यह एंकर सात्र विश्वास हो गया हे कि अंत्रेजी विधा. सीप्रघमेपर आरूढ रखनेकों जादू सा असर रखती है अधिकांश इसी भयस अपनी संतातनकों अंप्रेजीशिक्षा सही। देते परन्तु इस संधमका कारण और ही हैं अंग्रेजी बणमालाके ३२ अक्षर कुछ जादू नहीं करते अंग्ेजीमें लिखित पुस्तकोंका आशय ही देशके नौजवानोंकों घम्मेचयुत करता है और बह सटकंत फिरते हैं बिज्ञ पादरियोंक हारा प्रकाशित प्रथम पुस्तकें आरम्भ कर अन्तिम मुस्तकतक ख़ीए्रघमंके उपदेशोंसे तथा हिन्दूघमकी हीनतासें पूर्णे होगी तो घद्द क्रिस प्रकारसे आयकुछके बालककों उसके धर्म कम और देव दहितका ज्ञानो- पदच कर सकती है । थी प्रायः इसी प्रकारकी दा मैकसमूलर आदि संस्कृतके महा विद्वान अंग्रेज छेखकोंके अंग्रेजी अनुबादमें प्रा जाती है कोई आयये कुलमणि पूवेजोंकों गोभक्षक सिद्ध करता है कोई वर्णोश्रम घर्सेकों भाघुंनिक प्रमाणित करता है कोई विधवा विवाह सिद्ध करता दे इस बातका न्याय हम बिचारवान पाठकॉपर ही छोड़ते हैं कि बेद- प्रतिपादित हिन्दूधसंके सिद्धान्त भनादि वा सादि हैं अथवा जेखा मेगस्थतीज मय सन्‌ २७८ का छिखना सत्य है जो कि वॉक्ट्रिया [ लुंदाकिस्तान ] के मददाराजा सछूक- सका दूत था आर दूर व्षके लगसंग सगधदेशके महाराजा चन्द्रगुप्रकी सभामें रहा था बह छिखता हैं कि उच्चव्णमें जाह्मण आर क्षत्रिय थे जो गोरे रंगके होते थे इस्यादि खेदस यही कहना पढ़ता है कि हमारे देशाकी सभी अवस्थांस असभिज्ञ तथा. अन्यमता- बढ़म्बी होनेके कारणसे ऐसे २ अधिश्नान्त परिश्रम करनेवाले संसारमें विया बद्धिके सूये अकत्रिम साहसके गुर्णोंसे अरूकत घोर अंग्रेजी बिद्ान भारतकी इस आवश्यक वस्तुकी उचित सयोाजनन कर सके | न हनी . थॉपिि २ दर दीदी .. एफ गियर 2 इनिएडा [2० पल दर हिना | दर फेस्टन डे ही. ही जद १ सा झ न प या दि दपिटड दुकटटडकुफडन ज जल कह कद द पा ९ ह न ही का झ 42 3 दि रे कक िम्स दिये फि प्वािदे ्सिययर दे बिय इम्चिय पयोसि बम्यनन्डे 5 सन्नी | पद हा ड ट - ट्ातिस्वन्र ट तक १ डक गेल सफल ही दि 4 चन्ल कसर धच्स्टण दे सन्पद मी धल्‍्शनिदें स्व 3 गस्लटटसनरप्सदननर ७ और 3 श मामा दर. हननप) द25-८ 32... 2 प्राचीन तथा नवीन मुसलमान छेखकोक इतिहासोंकों देखाजाय तो उनकी आछो- चसा भी ऊपरकी आछोचना पंक्तिको फिर उड़त करनेसे दोजाती है बरन इनमें निदान राटटरिट्निर्ताएनाधलिएटाएलएलएलसलालाएराएलाएलाएटरारिलरिटट सिलाई ्ि कर कर




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