सामाजिक समास्याएं और सामाजिक परिवर्तन | Samajik Samasyayen Aur Samajik Parivartan
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.46 MB
कुल पष्ठ :
261
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सामाजिक समस्याएं और सामाजिक परिवर्तन हु
सामाजिक समस्याओ में 'ेयक्तिक दिचलन' के अध्ययन-विधि के प्रयोग मैं
हम ह्टेन और लेस्ले के अनुसार निम्न प्रदन पूछते हैं”*--किस प्रकार के व्यक्ति और
समूह नियमों से विचलित होते हैं ? क्या विचलित व्यक्ति स्वय समाज के लिए
समस्या हैं अथवा वे समस्या उत्पन्न करते हैं ? यदि समस्या उत्पन्न करते है तो केसे ?
क्या विचलित व्यक्ति मौलिक रूप से कुसमायोजित (प्ण318तुंए5८6) व्यक्ति हैं ?
कौन-सी आावश्यकताएँ उनको मान्यता-प्राप्त व्यवहार से विचलन की प्रेरणा देती हैं ?
कौन-सी विचलित उप-संस्कृतियाँ पायी जाती हैं तथा इन समूहों द्वारा कौन-से नियम
माने जाते है ? नियमों से विचलन करने वाले व्यक्तियों के पुनःसमाजीकरण के लिए
कौन-कौन से सुकाव उपलब्ध हैं ?
उपर्युक्त चार सिद्धान्त कुछ सामाजिक समस्याओं का आपस मे अन्तर-
सम्बन्ध सिद्ध करते है परन्तु थे सभी समस्याओं का हर श्रकार का पारस्परिक
सम्बन्ध स्पष्ट नही करते । वाल्स के अनुसार इन सिद्धान्तों का प्रमुख दोप समस्या
को बहुत सरल बनाने का प्रयत्न है।** हर सिद्धान्त सभी सामाजिक समस्याओ की
उत्पत्ति में एक सरल कारक पर बल देता है परन्तु स्थिति इतनी सरल नहीं है ।
वर्तमान समाजशास्त्रीय अध्ययन यह स्पष्ट रूप से बताते है कि सामाजिक समस्या
का निवारण इतना सरल नही हो सकता । यद्यपि चारों सिद्धान्तों की यह मान्यता
सही है कि सामाजिक समस्याएं समाज से ही उत्पन्न होती हैं और इस कारण उनमें
कोई सामान्य कारक होगा परन्तु वह “कोई कारण' क्या है यह स्पष्ट नहीं कर पाये
हैं। हम यह मानते हैं कि विभिन्न सामाजिक समस्याओं का आपस में सम्बन्ध भवस्य
होता हैं । यही पारस्परिक सम्बन्ध उनके (सामाजिक समस्याओं) कारणों व निवारण
के विश्लेपण का आधार होना चाहिए ।
सामाजिक समस्याश्रों का निवारण
सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए निम्नलिखित तीन पहलुओं
(छछा080065) को ध्यान में रसना चाहिए--
(1) बहु-कारकवादी हप्टिकोण (वए!0छा८-छिल0 . ब्ाएघी)-नइस
दुष्टिकोण के आधार पर हमें यह मानना पड़ता है कि कोई समस्या किसी एक कारण
से नही परन्तु अनेक कारणों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है। उदाहरणतः यह
मानना कि भारत में क्योकि 80 प्रतिशत अपराध चोरी से सम्बन्धित होते हैं इसलिए
निर्धनता ही अपराध का मुख्य कारण है, सही नहीं होगा । यदि केवल निर्धनता हो
अपराध का कारण हो तो सभी मिर्धन व्यक्ति अपराधी होते अथवा धनी व्यक्तियों में
हमें अपराध विस्कुल नहीं मिलता परन्तु ऐसा नहीं हैं। इस कारण अपराध का
कारण केवल निर्षनता न मानकर अनेक सामाजिक, मनोद॑ज्ञानिक भौर जैविकीय
१ अ64.. 35,
प पएह30, ठू, सं. हि,
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