कबीर की विचारधारा | Kabir Ki Vichardhara

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Kabir Ki Vichardhara by गोविन्द त्रिगुणायत - Govind Trigunayat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हक परिस्थितियों का उनके काव्य पर पर्थोप्त प्रंभाव पढ़ेता है । अतः किसी भी कवि वी वाणी के प्राण से परिचय प्राप्त करने के लिंए उस कवि के जीवन तथा उसके व्यक्तित्व के विकास का अध्ययन करना परमावश्यक हे । कबीरका अभी तक कोई प्रामाणिक जीवन-वृत्त नहीं लिखा गया हैं। कबीर साहित्य के प्रसिद्ध विद्वान डा ० राम ऊमार वमा ने अपने सतत कबीर” मं इस दिशा में सराहनीय काय॑ किया हैं । किन्तु उसे हम कबीर को जीवन सम्बन्धी जानकारी को “इति” नहीं कह सकते । किसी भी कवि.या महापरुष के जीवन वृत्त का निमाण करने के लिए हमें बहिस्सादयों चार अन्तस्सादयों का. आश्रय लेना पड़ता है । यहाँ हम पहले बहिस्साइय को सामग्री पर विचार करेंगे । बहिस्साकष्य की सामग्री कबोर के जीवन से सम्बन्धित बहिंस्सादय की सामग्री के रूप में हमें तीन “चीजें मिलती हैं । मर (क) वे प्राचीन प्रन्थ जिनमें कबीर का कुछ न कुछ विवरण/'श्राप्त होता हैं । उन्नीसवीं आर बोसवीं शताब्दी के विद्वानों ने राय: इन्हों ग्रन्थों के आधार पर उनका जोवन-दृत्त लिखा है । न पर कर जहर (ख) कबीर से सम्बन्धित स्थान, झॉर वस्तुएं । (ग) जन-श्रतियँ । क हम क्रमश इनमें, से, एक-एक का उल्लेख करते हैं (क,) प्राचीन ग्रन्थों के रूप में प्राप्त बहिस्सादय की सामग्री (१) नाभादास कृत भक्तमाल.:--इस ग्रन्थ का रचना. .काल « लगभग १५८४ इ० माना जाता है। इस ग्रन्थ म॑ कबीर के सम्बन्ध में केवल दो... पद दिए हैं । इनमें से एक छप्पय तो कंबीर पर हिं है ' श्र ' दस: छप्पय रामानन्द के सम्बन्ध में ,। , दोनों से कंबौर' श्र राम रा न्द हू कु सम्बन्ध स्पष्ट होता है । श्रत: इन दोन को उद्धत करते हैं :--. ... निलाल मन गरगकशरापयक! रकिकपएए-सपलपरपससकगमिय ३ डा० राम कुमार वमी--संत कबीर प्रस्ताबना-इ० इ




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