सूफी काव्य संग्रह | Sufi Kavya Sangrah

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Sufi Kavya Sangrah by आचार्य परशुराम चतुर्वेदी - Acharya Parshuram Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका छठ का यह प्रथम युग था जो ह्िजरी सन्‌ की टूसरी गताब्दी के अंतिम चरण तक चलता रहा और जिसमें वत्तमान सूफ़ियों में से कम से कम ाधें दर्जन के नाम और संधिप्त परिचय अभी तक सुरक्षित है। इनमें से भी, सर्वे प्रथम, अचू हसन वसरावी का नाम लिया जाता हैं. जिनका देह्वांत सं० ७८५ में हुआ था । सूफ़ियों में ये बड़ी प्रतिप्ठा की दृष्टि से देखें जाते हैं बौर इनके प्रशंसक इन्हें खलीफा अली के समान चरिन्रवानू बतलाने हूँ । ये परमंदवर से सदा भयभीत रहा करते थे और सर्वज्र इन्हें उसकी चेतावनी भी मिला करती थी 1 उधम साक्िक्र व वायाज़ प्रथम युग के सूफ़ियों में इब्राहीम विन अधस (मृ० सं० ८४०) का साम भी बहुत प्रसिद्ध है । ये वल्ख के एक राजपुरुप थे जिन्हें भाखेंट करते समय एक आकाश वाणी सुन पड़ी और उन्हें अपने लिए ऐसा प्रतीत होगया कि जिन कार्यों को पूरा करने में में लगा हुआ हूं वे मेरे वास्तविक उद्देग्य से नितांत भिन्न और विपरीत हैं । इन्हीं अधम के मुरीद एक देख साक़िक़ नाम के भी व्यक्ति थे जो वस्ख के ही निवासी थे । उन्हें किसी घोर अकाल के समय एक क्रीतदास के मुख से सुन पड़ा “मेरे स्वामी के पास अपार अन्नराशि है और वह मुक्ते भूखों नहीं मरने देगा ।” इस कथन का प्रभाव उनके ऊपर इतना गहरा पड़ गया कि उन्होंने अपने परमेदवर के प्रति आत्म-समपंण की भावना स्वीकार कर ली । इसी प्रकार फुजामल विन अयाज (मू० सं० ८५८) के लिए कहा जाता है कि प्रारंभिक जीवन काल में वे डाकूओं के सरदार थे । एक बार उन्हें किसी व्यक्ति के मुख से 'क्रान शरीफ़' की पंक्ति “क्या उन सच्चे हृदय वालों के छिए अभी अवसर नहीं आया हैं कि वे अपना अंतस्तल खोलकर पठचात्ताप करें ?” सुन पड़ी और उनके जीवन में काया पलट आ गया । उन्होंने अपने साथियों




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