सूफ़ी - काव्य - संग्रह | Sufhi Kavya Sangrah

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Sufhi Kavya Sangrah by आचार्य परशुराम चतुर्वेदी - Acharya Parshuram Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भगमिका ह हर दर दा सूफ़ अर्थात ऊन को अधिकतर व्यवहार में लाने वालों के लिए सूफी शब्द का प्रयोग उस दशा में कुछ अनुचित भी नहीं कहा जा सकता जब कि उनके ऐसे पहनावे अत्यंत साधारण होने के साथ साथ एक विशेष ढंग से बने भी रहा करते हों और इसी कारण सबका अधिक ध्यान भी आछृष्ट करते रहे हों । इसके सिवाय यह भी प्रसिद्ध है कि ऐसे लोग अपने इन वस्त्रों के व्यवहार द्वारा अपना सादा जीवन तथा स्वेच्छा-दारिद्रय भी प्रद्शित करते थे । ये लोग परमेश्वर की उपलब्धि को ही अपना एक मात्र ध्येय मानते थे और इस प्रकार घन वैभव अथवा अपने गृह परिवारादि के प्रति उदासीनता का भाव रखते हुए केवल उसी के ध्यान और चिंतन में सदा लगे रहना अपना कतेंव्य समभक्ता करते थे । परमेदवर के साथ निर्वाध मिलन तथा उसके प्रति सच्चे अनुराग में ही कालयापन करना उनके जीवन का सर्वोच्च आदर्श था । और उसके अतिरिक्त सभी बातों को उपेक्षा की दृष्टि से देखा करना उनके लिए स्वाभाविक सा हो गया था । सूफ़ियों की धारणा अत्तएव सादगी की उक्त विद्षेषता उनकी केवल बाहरी वेशभूषा तक ही सीमित नहीं थी । उनका संन्यासब्रत उनकी भीतरी मनो- वृत्तियों को भी प्रभावित किया करता था और अवूल हसन नरी के अनसार ऐसे लोग निर्धन दीख पड़ने के साथ साथ निष्काम भी हुआ करते थे 1 सूफ़ियों को इस वात में भी पूर्ण विद्वास था कि जिन वाणियों को हजरत मुहम्मद ने परमेरवर के यहां से प्राप्त किया था वे उनके साथ दो भिन्न भिन्न रूपों में प्रकट हुई थीं । एक तो वे थीं जिनका संग्रह कुरान दरीफ़ में किया गया और वे इसी कारण . इत्म-ए-सफ़ीना . अर्थात्‌ ्न्थनिहित . _ ज्ञान कहलाती हूं और दूसरी वे हैं जो रसूल के हृदयपट पर अंकित हो गई थीं और जिन्हें इसी कारण इट्म-ए-सीना वा हृदय निहित ज्ञान कहा जाता




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