गुजरात के गौरव | Gujarat Ke Gaurav

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Gujarat Ke Gaurav by के. एम. मुन्शी - K. M. Munshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्प देख रहा था । नगरसेठ के घर से भी स्त्रियाँ श्रा गई । रेवापाल की स्त्री बेनां झागे झ्राई। आँबड़ महेता इस स्त्री को देखते ही उकता जाता था श्रौर उसके संसर्ग से कैसे दूर रहे इसकी युक्ति भी कभी की सोच ली . थी । उसके पीछे उसकी सोलह वर्ष की भावी पत्नी उछलती-कदती श्राई । झाँबड़ विचार करने लगा कि उसके साथ जीवन भली प्रकार व्यतीत होगा या नहीं--उसका चित्त व्यग्र हो उठा । फिर तीन स्त्रियाँ श्र झाई । उसका हृदय उछल पड़ा । तीनों में सबसे भ्रागेवाली देवदार के समान लम्बी श्रौर सुघड़ थी । जहाँ वह डग रखती वहाँ छटा छा जाती और जिधर वह घूमती उधर रस झरने लगता था । राजहंसिनी जैसे तेर कर श्राती है वैसे ही वह आ रही थी--धीमी स्वाभाविक किन्तु गवे भरी गति से । उसके मुख पर तेजोमय हास्य दीप्त था । उसका स्वर बात करती हुई श्रन्य स्त्रियों की किलकारियों से प्रलग वीणा के कोमल स्वर के समान सुनाई पड़ता था। मंजरी सादे श्रौर इवेत वस्त्र धारण किए हुए थी । उसके अंग पर नाम मात्र के श्राभूषण थे । इस भ्रवसर के लिए उसने थोड़ा-सा भी श्वूगार किया हो ऐसा नहीं लगा । फिर उसकी सादगी की विशिष्ट्ता में कुछ निराला ही श्राकषंण था । मंजरी झ्राई--निरभिमान रूप से सबको चकाचौंध करती हुई । स्त्रियों में शान्ति छा गई । आँबड़ महेता के हृदय में भंकावात उठा 1 वह श्रौर उसकी सखियाँ श्रपनी परिचित स्त्रियों के साथ हंसती- बोलती हुई भ्राई । कसी हो बेनां भाभी ? मंजरी पुछ रही थी । शप्रच्छी हूँ । ग्रौर प्राणकु श्र तू ? अँबड़ की भावी पत्नी से मंजरी ने पूछा । हि मंजरी दीदी भ्रोज उत्सब्र के दिन इस प्रकार सादगी क्यों ?




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