साहित्यशास्त्र का पारिभाषिक शब्द कोष | Sahitya Shastra Ka Paribhashik Shabdakosh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
39.69 MB
कुल पष्ठ :
316
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)७... अनियम में नियम॑
धीरा-प्रगल्मा--कद्ध होने पर नायक का तजन श्र ताड़न करने वाली
प्रगल्मा नायिका ।
्धघीरा-मध्या--क्द्ध होने पर परुष भाषण द्वारा नायक को खिन्न करने वाली
मध्या नायिका |
' शधत्ति-कामातुरों की दस चेष्टाशं में से एक । विशेष दे० कामदशा ।
अध्यवसाय--नाटक में रसपोष के लिए; प्रयुक्त होने वाले ३३ नाय्यालंकारों
में से एक। विशेष दे० नाथ्यालंकार ।
अध्यांत रिंक-काव्य-गीति--गीतिकाव्य की प्रेरणा-शक्ति कवि को अंतस्तल
से मिलने के कारण यह गीति-काव्य का सर्वाधिक -महत्वपूंर भेद है। इसमें कवि के
व्यक्तिगत भावावेशों को प्रधानता दी जाती है। यह कवि की झंतः प्रवृत्ति श्रौर श्रान्तरिक
चित्तद्त्ति का ही काव्य है। श्रपने इश्देव के मिलन पर झ्रपने भावों का निवेदन
मस्ती में अचानक गा उठना, अपने झंतस की भावनाओं का चित्रण, आदि ही इस
तत्माभिव्यंजना मैं निभाया जाता है। कभी किसी विशिष्ट वस्तु को देख स्मृति श्रोर
कल्पना के बल पर कौतूदलपूण सष्टि खड़ी की जाती है । अंग्रेज़ी काव्यशास्त्र में इस.
कोटि के गीतिकाव्य “सब्जेक्टिव टाइप झॉफ लिरिक पोइट्री” कहते हैं ।
ब्नंगक्रीडा--पूर्वाद (प्रथम-द्वितीय चरण) मैं १६ गुरु श्र उत्तराद्ध (तृतीय-
चतुर्थ चरण) में ३२ लघु से बनने वाला विषम इत्तछुंद । इसे सौम्यशिखा भी कहते हैं ।
अअनंद--ज रा ज रा लगा कहें अनंद छुंद को ; जगण, रगण, . जगण,; रगण
लघु श्रौर गुरु से बनने वाला शक््वरी जाति का समबत्त छुंद ।
अअनन्वय--उपमानोपसेयट्वमेकस्येव त्वसस्वय: ।--साहित्यदपंण
एक साम्यमूलक अर्थालंकार जिसमें एक वाक्य मैं एक ही वस्तु को उपमान
तर उपसेय बनाया जाता है । उदादरण-- .
गगन सद्चच है गगन ही, जलबि-जलघि सम जान ।
है रण रावण राम को, रावण रास समान ॥--काव्यकल्पद्रुम
अनवीकुतत्व--बार-बार उसी पद के उसी शझ्रथ वाले पयाय॒ पद रखने के
कारण नवीनता उत्पत्न न होने से उत्पन्न शथंदोष (दे० यथा०) जेसे--'सूय सदा
निकलता है, दवा सदा चलती है, शेष सदा घरती को धारण करता है श्रौर धीर सदा
ब्पनी प्रशंसा नहीं करता है, यहाँ “सदा” के बार-बार श्राने से नवीनता न रही श्रोर
यह दोष हो गया । यहां सदा के पर्याय रख देने पर भी यह दोष बना रहेगा, यही
इसका कथितपदर्व से भेद है |
अनालंबनता--कामाउरों की दस चेष्टाश्रों में एक । विशेष दे० कामदशा ।
अनियम में नियम--नियम श्रभिप्रेत न होने पर भी नियम बनाकर बात
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