कवि - रहस्य | Kavi - Rahesya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.87 MB
कुल पष्ठ :
122
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about महामहोपाध्याय गंगानाथ झा - Mahamahopadhyaya Ganganath Jha
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(६ )
इतना कह कर सरस्वतीजी चली गई' | उसी समय उशनस्
(शुक्र महाराज ) कुश श्रौर लकड़ी लेने जा रहे थे । बच्चे को देख
कर अपने आश्रम मे ले गये । वहोँ पहुँच कर बच्चे ने कहा--
या दुग्धाधपि न दुग्थेव कविदोग्शमिरन्वहस् ।
हृदि न! सन्निधततां सा सक्तिघेजु? सरस्त्रती ॥।
झर्थात् 'सुमाषित की घेनु--जोा कवियों से दुद्दी जाने पर भी
नही दुद्दी की तरह बनी रहती है--ऐसी सरस्त्रती मेरे हृदय मे वास
करें । उसने यह भी कहा कि इस जोक को पढ़कर जो पाठ
झारम्भ करेगा वह सुमेघा बुद्धिमाद होगा । तभी से शुक्र को
लोग “कवि” कहने लगे। कवि? शब्द “कब” धातु से बना है--जिससे
उसका अर्थ हे “बन करनेवाला' । कवि का कर्म है “काव्य” |
इसी मूल पर सरस्ती के पुत्र का भी नाम 'काव्यपुरुष' प्रसिद्ध हुआ ।
इतने मे सरखतीजी लौटी, पुत्र को न देखकर दुखी हुई ।
वाल्मीकि उधर से जा रहे थे । उन्होंने बच्चे का शुक्र के आश्रम से
जाने का व्यौरा कह सुनाया । प्रसन्न दोकर उन्होंने वाल्मीकि को
छन्दोमयी वाणी का वरदान दिया । जिस पर दो चिड़ियों मे से
एक को व्याघ से मारा हुआ देख कर उनके मुंह से यह प्रसिद्ध
श्लोक निकल आया।
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाइवती! सभा! ।
यत्ोश्वमिधुनादेकमवधी! काममोहितस् ।।
इस ग्ाक को भी वरदान दिया कि कुछ आर पढ़ने के पहले
यदि कोई इस श्लोक को पढ़ेगा तो वह कवि दोगा। मिथिला
मे अब तक बच्चों को सबसे पहले यही ग्लोक सिखलाया जाता
झा 2
User Reviews
No Reviews | Add Yours...